मक्तूब नंबर 7
रोचक तथ्य
خواجہ معین الدین چشتی کے مکاتیب جو قطب الدین بختیار کاکی کے نام سے عوام میں منسوب ہیں، تاہم اہلِ تحقیق کے نزدیک یہ نسبت صحیح اور مستند نہیں مانی جاتی۔
बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम
आ’रिफ़-ए-मआरिफ़, हक़-आगाह, आशिक़-ए-ख़ुदा, मेरे भाई क़ुतुबुद्दीन अल्लाह पाक आपके फ़क़्र को ज़्यादा करे। दुआ-गो की तरफ़ से प्यार भरे सलाम के बा’द अर्ज़ है- अ’ज़ीज़-ए-मन ! अपने मुरीदों को ज़रूर बता देना कि फ़क़ीर-ओ-मुर्शिद से क्या मुराद है और इसकी अ’लामत क्या है और यह क्यूँ-कर पहचाना जाता है।
मशाएख़-ए-तरीक़त ने फ़रमाया है-
“अलफ़क़्ररु मा-ला यहताजु इला कुल्लि-ए-शैइन”
या’नी फ़क़ीर उस शख़्स को कहते हैं जो तमाम ज़रूरियात से फ़ारिग़ हो और ख़ुदा के बाक़ी रहने वाले चेहरे के सिवा और किसी चीज़ का तालिब ना हो। तमाम मौजूदात उसके बाक़ी रहने वाले चेहरे का आईना और मज़हर हैं इस वास्ते वो उनसे अपना मक़्सूद देखता है।
बा’ज़ लोगों ने इसकी तशरीह यूं फ़रमाई है कि कामिल फ़क़ीर उसे कहते हैं कि जिसके दिल से सिवा-ए-हक़ के सब कुछ दूर हो और ख़ुदा के सिवा और कोई उसका मक़्सूद या मतलूब ना हो। जब ख़ुदा के सिवा सब कुछ दिल से दूर हो जाता है मक़्सद हासिल हो जाता है इसलिए तालिब को हमेशा मतलूब-ओ-मक़्सूद के दर पर रहना चाहिए। अब ये मा’लूम कर लेना चाहिए कि मतलूब-ओ-मक़्सूद क्या है??
—
सो वाज़ेह रहे कि मक़्सूद यही दर्द-ओ-सोज़ है ख़्वाह हक़ीक़ी हो ख़्वाह मजाज़ी।
वस्सलाम।
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