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बारगाह-ए-हुस्न का पर्दा उठा हो मैं न हूँ

आरिफ़ नक़्शबंदी

बारगाह-ए-हुस्न का पर्दा उठा हो मैं न हूँ

आरिफ़ नक़्शबंदी

MORE BYआरिफ़ नक़्शबंदी

    बारगाह-ए-हुस्न का पर्दा उठा हो मैं हूँ

    शान-ए-महबूबी में तू जल्वा-नुमा हो मैं हूँ

    अहल-ए-दिल को दीद का मौक़ा' मिला हो मैं हूँ

    ज़ाएरों की भीड़ हो रौज़ा तिरा हो मैं हूँ

    वाए-नाकामी कि इक ख़ल्क़-ए-ख़ुदा हो मैं हूँ

    हैफ़ जज़्ब-ए-दिली सद हैफ़ जज़्ब-ए-दिली

    ख़ाक ऐसी ज़िंदगी पर तुफ़ है ऐसी ज़िंदगी

    फिर मदीना की तमन्ना दिल की दिल में ही रही

    ज़िंदगी से उस घड़ी है मौत बेहतर जिस घड़ी

    क़ाफ़िला मुल्क-ए-'अरब का जा रहा हो मैं हूँ

    अल-अमाँ मंज़िल मोहब्बत की भी है कैसी कड़ी

    दिल में सोज़-ए-ग़म लगी आँखों से अश्कों की झड़ी

    हाय महरूमी क़यामत उस से क्या होगी बड़ी

    ज़िंदगी से उस घड़ी है मौत बेहतर जिस घड़ी

    क़ाफ़िला मुल्क-ए-'अरब का जा रहा हो मैं हूँ

    ख़ुश नसीबों को मुबारक दीद की वो ने'मतें

    रौज़ा-ए-पुर-नूर में हुस्न-ए-ख़ुदा की जल्वतें

    रंज-ए-दूरी ढा रहा मुझ पे क्या क्या आफ़तें

    दिल में घुट-घुट कर रही जाती हैं दिल की हसरतें

    कूचा-ए-महबूब में मेला लगा हो मैं हूँ

    सब को है दीदार हासिल उन की जल्वा-गाह में

    एक में ही ना-मुराद ऐसा रहा हूँ चाह में

    कारवाँ की गर्द बन कर रह गया हूँ राह में

    मैं वो रद्द-ए-ख़ल्क़ ठहरा हूँ कि बज़्म-ए-शाह में

    इंस हो जिन्न हो फ़रिश्ता हो हवा हो मैं हूँ

    ज़ाएरों पर वक़्त-ए-रुख़्सत ये घड़ी भी है ग़ज़ब

    यास की तस्वीर बन कर तकते हैं रौज़ा को सब

    शम' से परवाना छट कर ज़िंदा रह सकता है कब

    रोते धोते सर पटकते रौज़ा से रुख़्सत हों जब

    अजल उस वक़्त को तेरा भला हो मैं हूँ

    ना'त गोई 'उम्र भर 'आरिफ़ रहा जिस का शि'आर

    क्या मिटा सकती है उस को गर्दिश-ए-लैल-ओ-नहार

    कह गया हक़ बात मद्दाह-ए-शह-ए-’आली-वक़ार

    दफ़्तर-ए-ना'त-ए-नबी 'हाफ़िज़' है मेरा यादगार

    ता-क़यामत ख़ल्क़ में शोहरा मिरा हो मैं हूँ

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