सुख़नवर है वही जो बज़्म में है मद्ह-ख़्वाँ तेरा
रोचक तथ्य
منقبت درشان صابرپاک حضرت علاؤالدین علی احمد (کلیر، اتراکھنڈ)
सुख़नवर है वही जो बज़्म में है मद्ह-ख़्वाँ तेरा
वही अहल-ए-ज़बाँ है नाम ले जिस की ज़बाँ तेरा
वही है आँख हो जिस आँख में जल्वा अ'याँ तेरा
वही अच्छा है दिल जिस दिल में है दर्द-ए-निहाँ तेरा
तेरा सौदा न हो जिस सर में वो सर क्या है पथर है
तबी'अत क्या है वो जिस में नहीं वहम-ओ-गुमाँ तेरा
तेरे फ़ैज़-ए-करम से कोई ख़ाली हाथ क्यूँ जाए
दर-ए-रहमत है दर तैरा मकाँ जन्नत-निशाँ तेरा
तेरा नाम-ए-मुबारक क्यूँ भला मख़्फ़ी हो ख़िल्क़त से
'अयाँ 'आलम में तू पीरान-ए-कलियर में निशाँ तेरा
कोई ऐसी हो शब हो ख़्वाब में दीदार या साबिर
ख़ुदा वो दिन करे आँखों से देखूँ आस्ताँ तेरा
इधर भी इक नज़र हो अल-मदद या हज़रत-ए-साबिर
तेरे दर के सिवा जाए भला साएल कहाँ तेरा
मैं पढ़ता हूँ ग़ज़ल जिस दम निदा आती है मरक़द से
पसंद आया है 'नातिक़' बस हमें तर्ज़-ए-बयाँ तेरा
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