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ख़ुदा-वंद-ए-मुतलक़ हमारा 'अली है

आशिक़ हैदराबादी

ख़ुदा-वंद-ए-मुतलक़ हमारा 'अली है

आशिक़ हैदराबादी

MORE BYआशिक़ हैदराबादी

    रोचक तथ्य

    منقبت در شان حضرت علی مرتضیٰ (نجف-عراق)

    ख़ुदा-वंद-ए-मुतलक़ हमारा 'अली है

    ख़ुदाई का मुख़्तार मौला 'अली है

    वो सिर्र-ए-'अजाइब का है ख़ास मज़हर

    नबी की हक़ीक़त का जल्वा 'अली है

    जो है पर्दा-ए-’ऐन में नुक़्ता रौशन

    बि-'ainhi बसीरत का दीदा 'अली है

    नज़ीर-ओ-’अदील उस का कोई नहीं अब

    दर गंज-ए-वहदत का पाया 'अली है

    त'अय्युन में आते ही इस्म अपना रखा

    बिला-शुबा शक्ल-ए-मुसम्मा 'अली है

    सदा रही थी जो मे'राज की शब

    उस आवाज़-ए-ग़ैबी का दाना 'अली

    फ़ना ज़ात-ए-मुतलक़ में हो कर तो देखो

    सदा मुल्क-ए-हस्ती में ज़िंदा 'अली है

    झुकाते हैं सर ताक़ अबरू में उस के

    हमारी 'इबादत का क़िब्ला 'अली है

    विलादत से इस की है 'अज़्मत हरम को

    ख़ुदा की क़सम फ़ख़्र का'बा 'अली है

    है पेश-ए-नज़र मुझ को तस्वीर-ए-हैदर

    कि इस्म-ए-मोहम्मद का नक़्शा 'अली है

    जो तनज़ीह आई है तश्बीह बन कर

    उसी रम्ज़ का हाँ नमूना 'अली है

    थे सब मुन्कशिफ़ रम्ज़-ए-मुत्लक़ उसी पर

    कि सिर्र-ए-हक़ीक़त का गोया 'अली है

    शरफ़ कुछ नहीं है नजफ़ ही को उस से

    मैं देखूँ जहाँ ज़ाहिर उस जा 'अली है

    करोड़ों हुए ग़ोता-ज़न ग़र्क़ इस में

    'अजब नूर-ए-'इरफ़ाँ का दरिया 'अली है

    हूँ 'ईसा से कब 'इश्क़ के मुर्दे ज़िंदा

    तन-ए-कुश्तगाँ का मसीहा 'अली है

    ज़बान साफ़ कर विर्द-ए-नाद-ए-'अली से

    'अजब ज़िक्र-ओ-नादिर वज़ीफ़ा 'अली है

    कह इकतीस छत्तीस बत्तीस ग्यारह

    इन आ’दाद-ए-सालिम का जुमला 'अली है

    मु’अम्मे को मेरे समझ ग़ौर से तू

    मोहम्मद के कलिमा का मा'नी 'अली है

    हुआ आप ही ज़ात में अपने क़ाइम

    साद अपनी क़ुदरत में यकता 'अली है

    जो उस को समझता है ग़ाएब जहाँ से

    वो मरदूद दरगाह-ए-मौला 'अली है

    विलायत करामत शुजा'अत में यकता

    दो-'आलम में मौजूद-ओ-पैदा 'अली है

    है शान 'अली ही में मन कंत मौला-हु

    कि हर इक का मौला-ओ-आक़ा 'अली है

    निदा सिर्र-ए-बेचूँ से आती है हर दम

    मौला 'अली है बंदा 'अली है

    मिरा रहबर 'आशिक़' ख़्वाजा-ए-चिश्त

    'अली है 'अली है मु’अल्ला अ'ली है

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    अज्ञात

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