तेरे दर का गदा ले के कासा शहा है खड़ा आज तेरे ये दरबार में
तेरे दर का गदा ले के कासा शहा है खड़ा आज तेरे ये दरबार में
अ'ब्दुल सत्तार नियाज़ी
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तेरे दर का गदा ले के कासा शहा है खड़ा आज तेरे ये दरबार में
तेरी रहमत का सदक़ा मुझे भी मिले है कमी कौन सी तेरी सरकार में
अपने दामन में कोई भी नेकी नहीं तेरी रहमत का है आसरा बस हमें
आ'सियों पर ख़ताओं की बहर-ए-खु़दा लाज रख लेना महशर के बाज़ार में
आ'शिक़ो आ गया शहर सरकार का देखना ऊँची आवाज़ न हो कहीं
आँसुओं की ज़बाँ ले के अफ़्साना ग़म कहो कमली वाले की सरकार में
क्यूँ फ़िदा उन पे माह-ए-ताबाँ न हो क्यूँ न ख़ुर्शीद आक़ा पे क़ुर्बान हो
जबकि है जल्वा-गर नूर-ए-रब्बुल-उ'ला कमली वाले मोहम्मद के अनवार में
गाए जा गीत तू अपनी सरकार के अपनी सरकार के अपने ग़म-ख़्वार के
वो 'नियाज़ी' हैं आ'लम के हाजत-रवा उन का सानी नहीं कोई संसार में
- पुस्तक : Kulliyat-e-Niazi (पृष्ठ 28)
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