हो जाए ’अता कुछ बहर-ए-ख़ुदा सुल्तान-उल-हिंद ग़रीब नवाज़
हो जाए ’अता कुछ बहर-ए-ख़ुदा सुल्तान-उल-हिंद ग़रीब नवाज़
अब्दुल्लाह बेदिल
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रोचक तथ्य
منقبت در شان غریب نواز خواجہ معین الدین چشتی (اجمیر-بھارت)
हो जाए ’अता कुछ बहर-ए-ख़ुदा सुल्तान-उल-हिंद ग़रीब नवाज़
मशहूर सख़ी है नाम तिरा सुल्तान-उल-हिंद ग़रीब नवाज़
इस दर के गदा हैं शाह-ओ-गदा सुल्तान-उल-हिंद ग़रीब नवाज़
है सारे जहाँ पर तेरी ’अता सुल्तान-उल-हिंद ग़रीब नवाज़
सरकार तेरी वो 'आला है दरबार तेरा वो बाला है
गोया है ज़मीं पर 'अर्श-ए-'उला सुल्तान-उल-हिंद ग़रीब नवाज़
वो बज़्ल-ओ-सख़ा सरकार में है शीराज़ कहूँ अजमेर को मैं
देगों में तेरी यग़्मा का मज़ा सुल्तान-उल-हिंद ग़रीब नवाज़
मदहोश भी हो कर होश रहे हर रंग में आए वो ही नज़र
इस मय का हो मुझ को जाम 'अता सुल्तान-उल-हिंद ग़रीब नवाज़
इमदाद करो इमदाद करो ये वक़्त पड़ा है दीन पे अब
ऐ मेरे मुई'न-ओ-'उक़्दा-कुशा सुल्तान-उल-हिंद ग़रीब नवाज़
तू बहर-ए-ख़ुदा रौज़ा से निकल दीदार दिखा 'उश्शाक़ को अब
पर्दे को हटा ले रुख़ से ज़रा सुल्तान-उल-हिंद ग़रीब नवाज़
इक़्लीम-ए-विलायत में तेरी सब ज़ेर-ए-नगीं हैं और वली
मशहूर जहाँ है नाम तेरा सुल्तान-उल-हिंद ग़रीब नवाज़
किस शम'-रू की तुर्बत है जो सोज़-ए-रश्क-ए-उल्फ़त है
फ़ानूस का जिस ने काम दिया सुल्तान-उल-हिंद ग़रीब नवाज़
'बेदिल' को दिया जो तू ने दिया जो उस को मिला वो तुझ से मिला
क़ुर्बान हूँ है सब तेरी 'अता सुल्तान-उल-हिंद ग़रीब नवाज़
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