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सब से औला-ओ-’आला हमारा नबी

अहमद रज़ा ख़ान

सब से औला-ओ-’आला हमारा नबी

अहमद रज़ा ख़ान

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    सब से औला-ओ-’आला हमारा नबी

    सब से बाला-ओ-वाला हमारा नबी

    अपने मौला का प्यारा हमार नबी

    दोनों आ'लम का दूल्हा हमारा नबी

    बज़्म-ए-आख़िर का शम्अ' फ़रोज़ाँ हुआ

    नूर-ए-अव्वल का जल्वा हमारा नबी

    जिस को शायाँ है 'अर्श-ए-ख़ुदा पर जुलूस

    है वो सुल्तान-ए-वाला हमारा नबी

    बुझ गईं जिस के आगे सभी मिश‘अलें

    शम्अ' वो लेकर आया हमारा नबी

    जिन के तलवों का धोवन है आब-ए-हयात

    है वो जान-ए-मसीहा हमारा नबी

    अर्श-ओ-कुर्सी की थीं आईना-बंदियाँ

    सू-ए-हक़ जब सिधारा हमारा नबी

    ख़ल्क़ से औलिया औलिया से रुसुल

    और रसूलों से आ'ला हमारा नबी

    हुस्न खाता है जिस के नमक की क़सम

    वो मलीह-ए-दिल-आरा हमारा नबी

    ज़िक्र सब फीके जब तक मज़कूर हो

    नमकीं हुस्न वाला हमारा नबी

    जिस की दो बूँद हैं कौसर-ओ-सलसबील

    है वो रहमत का दरिया हमारा नबी

    जैसे सब का ख़ुदा एक है वैसे ही

    इन का उन का तुम्हारा हमारा नबी

    क़रनों बदली रसूलों की होती रही

    चाँद बदली का निकला हमारा नबी

    कौन देता है देने को मुँह चाहिए

    देने वाला है सच्चा हमारा नबी

    क्या ख़बर कितने तारे खिले छुप गए

    पर डूबे डूबा हमारा नबी

    मुल्क-ए-कौनैन में अंबिया ताजदार

    ताजदारों का आक़ा हमारा नबी

    ला-मकाँ तक उजाला है जिस का वो है

    हर मकाँ का उजाला हमारा नबी

    सारे अच्छों से अच्छा समझिए जिसे

    है उस अच्छे से अच्छा हमारा नबी

    सारे ऊंचों से ऊँचा समझिए जिसे

    है उस ऊँचे से ऊँचा हमारा नबी

    अंबिया से करूँ अ'र्ज़ क्यूँ मालिको

    क्या नबी है तुम्हारा हमारा नबी

    जिस ने टुकड़े किए हैं क़मर के वो है

    नूर-ए-वहदत का टुकड़ा हमारा नबी

    सब चमक वाले उजलों में चमका किए

    अंधे शीशों में चमका हमारा नबी

    जिस ने मुर्दा-दिलों को दी उ'म्र-ए-अबद

    है वो जान-ए-मसीहा हमारा नबी

    ग़मज़दों को 'रज़ा' मुज़्दा दीजे कि है

    बेकसों का सहारा हमारा नबी

    स्रोत :
    • पुस्तक : हदाएक़-ए-बख़्शिश (पृष्ठ 57)
    • रचनाकार : आला हज़रत मौलाना अहमद रज़ा ख़ाँ

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