सर झुका अपना जो सीने की तरफ़
सर झुका अपना जो सीने की तरफ़
दिल हुआ राही मदीने की तरफ़
लीजिए मुझ नीम-बिस्मिल की ख़बर
हूँ न मरने की न जीने की तरफ़
उठती है जो मौज-ए-तूफ़ाँ बहर में
आती है मेरे सफ़ीने की तरफ़
रो'ब हज़रत से नहीं इतनी मजाल
संग देखे आबगीने की तरफ़
मेहर से चमका दिया देखा अगर
माह के दाग़ी नगीने की तरफ़
बहस जब करने लगे इत्र-ओ-अरक़
गुल हुए उस के पसीने की तरफ़
देखता था आप को बू-जहल यूँ
जिस तरह अफ़ई ख़ज़ीने की तरफ़
तन से निकलेगी मिरे जिस दम 'अमीर'
रूह जाएँगी मदीने की तरफ़
- पुस्तक : महामिद-ए-ख़ातिमुन नबिय्यीन (पृष्ठ 65)
- रचनाकार : अमीर मीनाई
- प्रकाशन : मुंशी नवलकिशोर, लखनऊ (1930)
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