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ब-जुज़ रहबर न पहुँचा रहरव-ए-मंज़िल कोई हद को

असीर लखनवी

ब-जुज़ रहबर न पहुँचा रहरव-ए-मंज़िल कोई हद को

असीर लखनवी

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    ब-जुज़ रहबर पहुँचा रहरव-ए-मंज़िल कोई हद को

    वही अल्लाह को जाने जो पहचाने मोहम्मद को

    नहीं है अबरू-ए-पुर-ख़म के नीचे आँख की पुतली

    किया है नस्ब का'बा में ख़ुदा ने संग-ए-असवद को

    बनाए आसमाँ अल्लाह ने हज़रत की ख़ातिर से

    करता ख़ल्क़ उन को ख़ल्क़ अगर करता अहमद को

    कहीं ज़र्रे से कम है मेहर रौशन सामने जिन के

    मिला है नूर ऐसा ज़र्रा-हाए-ख़ाक-ए-मरक़द को

    किया जिस दिन शब-ए-मे’राज क़स्द-ए-'आलम-ए-बाला

    हुए क्या शाद अहल-ए-'अर्श सुन कर आमद आमद को

    हमेशा महफ़िल-ए-आफ़ाक़ में है रौशनी जिस की

    किया सिबतैन ने रौशन ये नाम-ए-जद्द-ए-अमजद को

    ‘असीर’ अहबाब-ए-मौला को मुबारक ख़ंदा-ए-शादी

    जो कीना दिल में रखते हों वो रोएँ ताले’-ए-बद को

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