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असरार-ए-हक़ीक़त हो-हो कर असरार-ए-मोहम्मद आते हैं

ज़हीन शाह ताजी

असरार-ए-हक़ीक़त हो-हो कर असरार-ए-मोहम्मद आते हैं

ज़हीन शाह ताजी

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    रोचक तथ्य

    مشاعرہ ’’بزمِ ضیا‘‘ جٹ لینڈ لائنز 22- 2 کراچی۔ مصرعۂ طرح ۔ جام مئے کوثر ہاتھ میں ہے سرشار محمد آتے ہیں

    असरार-ए-हक़ीक़त हो-हो कर असरार-ए-मोहम्मद आते हैं

    अनवार-ए-इलाही बन-बन कर अनवार-ए-मोहम्मद आते हैं

    कब सहव में आने को महव दीदार-ए-मोहम्मद आते हैं

    कैफ़-ए-अबदी में मुसतग़रक़ सरशार-ए-मोहम्मद आते हैं

    अल्लाह के दीवाने बन कर हुशियार-ए-मोहम्मद आते हैं

    मस्तान-ए-ख़ुदा की दुनिया में नज़र सरशार-ए-मोहम्मद आते हैं

    दीदार-ए-इलाही जन्नत में मौ’ऊद है लेकिन जन्नत में

    आते हैं वही जो मुश्ताक़-ए-दीदार-ए-मोहम्मद आते हैं

    हर बोल नबी का अपनाया हर बोल को अपना क़ौल किया

    भाते हैं ख़ुदा को अंदाज़ गुफ़्तार-ए-मोहम्मद आते हैं

    अल्लाह की सारी तारीफ़ें दर-पर्दा ना'त-ए-मोहम्मद हैं

    अल-हम्द के आईने में नज़र अनवार-ए-मोहम्मद आते हैं

    जन्नत के दर-ओ-दीवार मगर आईना-दार-ए-मदीना हैं

    रह-रह के मिरी आँखों में दर-ओ-दीवार-ए-मोहम्मद आते हैं

    ये कू-ए-नबी के दीवाने ख़ुशबू-ए-जन्नत पहचाने

    गुलज़ार-ए-जिनाँ की धुन में सू-ए-गुलज़ार-ए-मोहम्मद आते हैं

    इक तुम ही नहीं बीमार 'ज़हीन' इस बारगह-ए-महबूबी में

    अच्छे अच्छे होने के लिए बीमार-ए-मोहम्मद आते हैं

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