बे-मिस्ल है तू हैं तिरे अंदाज़ निराले ऐ आगरे वाले
बे-मिस्ल है तू हैं तिरे अंदाज़ निराले ऐ आगरे वाले
शाह अकबर दानापूरी
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बे-मिस्ल है तू हैं तिरे अंदाज़ निराले ऐ आगरे वाले
रुख़ चाँद है ये गेसू हैं इस चाँद के हाले ऐ आगरे वाले
तूफ़ान है दरिया में बपा रात है तारीक गुन टूट गए हैं
ये कश्ती-ए-दिल अब तो हुई तेरे हवाले ऐ आगरे वाले
आवारा-ओ-सरगश्ता हूँ सहरा-ए-तलब में रस्ता मुझे बतला
ताक़त न रही पाँव में तलवों में हैं छाले ऐ आगरे वाले
अफ़्सोस कि ग़फ़लत में कटी सारी जवानी अब मरने की ठानी
लिल्लाह दम-ए-आख़िर मेरी बिगड़ी को बना ले ऐ आगरे वाले
गिरने को है अब चाह-ए-बला में तिरा 'अकबर' है मुज़्तर-ओ-शश्दर
तू ही न सँभालेगा तो फिर कौन सँभाले ऐ आगरे वाले
- पुस्तक : तजल्लियात-ए-इ’श्क़ (पृष्ठ 291)
- रचनाकार : शाह अकबर दानापुरी
- प्रकाशन : शौकत शाहजहानी, आगरा (1896)
- संस्करण : First
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