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हुए हैं दीदा-ओ-दिल मह्व-ए-शान-ए-गंज-ए-शकर

पीर नसीरुद्दीन नसीर

हुए हैं दीदा-ओ-दिल मह्व-ए-शान-ए-गंज-ए-शकर

पीर नसीरुद्दीन नसीर

MORE BYपीर नसीरुद्दीन नसीर

    रोचक तथ्य

    منقبت درشان گنج شکر بابا فریدالدین مسعود (پاک پٹن۔پاکستان)

    हुए हैं दीदा-ओ-दिल मह्व-ए-शान-ए-गंज-ए-शकर

    ज़हे-नसीब मिला आस्तान-ए-गंज-ए-शकर

    वो भीड़ देखिए वो आस्तान-ए-गंज-ए-शकर

    नज़र के सामने हैं ज़ाइान-ए-गंज-ए-शकर

    फ़लक पे औज-ए-सुरय्या निशान-ए-गंज-ए-शकर

    कुल औलिया में निराली है शान-ए-गंज-ए-शकर

    मुझे ही फ़ख़्र नहीं है नियाज़-मंदी का

    हैं सारे जिन्न-ओ-मलक मदह-ख़्वान-ए-गंज-ए-शकर

    सदा-बहार हैं उस के तमाम ग़ुंचा-ओ-गुल

    ख़िज़ाँ की ज़द में नहीं गुलिस्तान-ए-गंज-ए-शकर

    मिठास शहद की एक एक हर्फ़ में उन के

    नबात-ओ-क़ंद से शीरीं ज़बान-ए-गंज-ए-शकर

    'अजब भीड़ है क़स्र-ए-जिनाँ में हश्र-नुमा

    जिधर भी देखो उधर ’आशिक़ान-ए-गंज-ए-शकर

    लतीफ़-तर हैं ’उरूज-ओ-नुज़ूल की बातें

    सुनाए जाए कोई दास्तान-ए-गंज-ए-शकर

    हुसूल-ए-क़ुर्ब-ए-इलाही थी मंज़िल-ए-मक़्सूद

    रुका और कहीं कारवान-ए-गंज-ए-शकर

    उन्हीं के बाग़ के गुल साबिर-ओ-निज़ामुद्दीन

    बसे हैं दिल में मिरे दिलबरान-ए-गंज-ए-शकर

    जो इन के दोस्त हैं वो सुर्ख़़रु जहाँ में हैं

    ज़लील-ओ-ख़्वार हुए दुश्मनान-ए-गंज-ए-शकर

    जिधर भी देखिए है सामने तजल्ली-ए-ज़ात

    जहान-ए-तूर है यकसर जहान-ए-गंज-ए-शकर

    'नसीर' अपनी सी कोशिश क़लम ने की लेकिन

    तमाम हो सकी दास्तान-ए-गंज-ए-शकर

    स्रोत :
    • पुस्तक : कुल्लियात-ए-नसीर गिलानी (पृष्ठ 326)

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