दिल-ओ-जाँ से मलक क़ुर्बान-ए-वारिस
रोचक तथ्य
(ماہنامہ ’’صحیفۂ وارث‘‘ دیویٰ شریف)
दिल-ओ-जाँ से मलक क़ुर्बान-ए-वारिस
बशर क्या जानें इज़्ज़-ओ-शान-ए-वारिस
जिसे चाहें बनाएँ या बिगाड़ें
ज़मानः ताबे'-ए-फ़रमान-ए-वारिस
मलक समझे हैं जिस को चर्ख़-ए-हशतुम
वही है गुम्बद-ए-ऐवान-ए-वारिस
गुल-ए-तौहीद-ए-इरफ़ाँ खिल रहे हैं
फला-फूला है क्या बुस्तान-ए-वारिस
सवा नेज़े पे है ख़ुर्शीद-ए-महशर
मदद ऐ सायः-ए-दामान-ए-वारिस
कलीम-उल्लाह बर्क़-ए-तूर समझें
अगर चमके रुख़-ए-ताबान-ए-वारिस
वही हाजत-रवा-ए-बे-कसाँ हैं
ज़मानः-भर पे है एहसान-ए-वारिस
दिखा ऐ जल्व: बर्क़-ए-तजल्ली
फ़रोग़-ए-आरिज़-ए-रुख़्शान-ए-वारिस
दिल-ए-'कौसर' रहे उलझन में कब तक
मदद ऐ गेसू-ए-पेचान-ए-वारिस
- पुस्तक : तज़्किरा शो'रा-ए-वारसिया (पृष्ठ 89)
- प्रकाशन : फ़ाइन बुक्स प्रिंटर्स (1993)
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