मेरे दिल का चैन आँखों की बसारत हैं बतूल
रोचक तथ्य
منقبت در شان حضرت فاطمہ زہرا (مدینہ-سعودی عرب)
मेरे दिल का चैन आँखों की बसारत हैं बतूल
फ़िक्र-ओ-फ़न की और तसव्वुर की तहारत हैं बतूल
सब्र-ओ-इस्तिक़लाल तक़्वा के म'आनी जिस में हैं
उस किताब-ए-ज़िंदगी की शान-ओ-रिफ़’अत हैं बतूल
नाज़िश-ए-श्रम-ओ-हया हैं और वफ़ा की ताजवर
कंज़-ए-ईमाँ बहर-ए-इख़्लास-ओ-मोहब्बत हैं बतूल
तर्बियत जिस से हुई है शब्बर-ओ-शब्बीर की
जाँ-निसारी के सबक़ की वो 'इबारत हैं बतूल
इस लिए है उन के दर पर आरज़ूओं का हुजूम
मर्कज़-ए-लुत्फ़-ओ-करम बहर-ए-सख़ावत हैं बतूल
बे-ज़बानों की ज़बाँ हैं ग़म के मारों का भरम
चारासाज़-ए-ज़ख़्म-ए-दिल तस्कीन-ओ-राहत हैं बतूल
दुख़्तर-ए-शाह-ए-उमम हैं ज़ौजा-ए-मौला 'अली
मादर-ए-शब्बीर-ओ-शब्बर फ़ख़्र-ए-जन्नत हैं बतूल
जिस को सुन कर जाग जाए अहल-ए-बातिल का ज़मीर
जज़्बा-ए-ईसार की ऐसी ज़मानत हैं बतूल
इस लिए दिल पर नहीं है दोसरा कोई भी रंग
शब्बर-ओ-शब्बीर के परचम की रंगत हैं बतूल
लाला-ज़ार-ए-मुस्तफ़ा में जिस से आई है बहार
वो मुक़द्दस आबशार-ए-दीन-ओ-सुन्नत हैं बतूल
आदमी को ज़िंदगी भर जिस की रहती है तलाश
दीन-ए-हक़ का वो निशान-ए-इस्तक़ामत हैं बतूल
ऐ ख़ुदा मेहर-ओ-वफ़ा से लोग ख़ाली हो गए
भेज दे फिर 'अह्द-ए-हाज़िर की ज़रूरत हैं बतूल
इस लिए 'ख़ालिद' हिसाब-ए-हश्र का खटका नहीं
हम गुनहगारों की महशर में ज़मानत हैं बतूल
- पुस्तक : अनवार-ए-करबला (पृष्ठ 45)
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