रब जिस के उठाए नाज़-ओ-ने’अम या शाह-ए-उमम या शाह-ए-उमम

रब जिस के उठाए नाज़-ओ-ने’अम या शाह-ए-उमम या शाह-ए-उमम
ख़ालिद नदीम बदायूँनी
MORE BYख़ालिद नदीम बदायूँनी
रब जिस के उठाए नाज़-ओ-ने’अम या शाह-ए-उमम या शाह-ए-उमम
वो ज़ात है तेरी बहर-ए-करम या शाह-ए-उमम या शाह-ए-उमम
धरती पे रखे जब तुम ने क़दम या शाह-ए-उमम या शाह-ए-उमम
ख़ुद टूट गए का'बे के सनम या शाह-ए-उमम या शाह-ए-उमम
नादार की झोली भरने को ख़ुद जोश पे रहमत आ जाए
हो जाए जो तेरी चश्म-ए-करम या शाह-ए-उमम या शाह-ए-उमम
दरबार-ए-मदीना की जानिब जब शौक़-ए-तमन्ना ले जाए
मैं चूम लूँ उन के नक़्श-ए-क़दम या शाह-ए-उमम या शाह-ए-उमम
फिर सिद्क़-ओ-सफ़ा के गुलशन में ईमान की कलियाँ खिल जाएँ
फिर 'इश्क़-ओ-मोहब्बत हो बाहम या शाह-ए-उमम या शाह-ए-उमम
तुम 'अर्श-ए-'अला की 'अज़्मत हो तुम ग़ार-ए-हिरा की ज़ीनत हो
है तुम से मुनव्वर हर ’आलम या शाह-ए-उमम या शाह-ए-उमम
वो राह मुनव्वर हो जाए वो राह मो'अत्तर हो जाए
जिस राह पे रक्खें आप क़दम या शाह-ए-उमम या शाह-ए-उमम
हर लफ़्ज़ मुनव्वर हो जाए हर लफ़्ज़ मो'अत्तर हो जाए
जब ना'त लिखे 'ख़ालिद' का क़लम या शाह-ए-उमम या शाह-ए-उमम
- पुस्तक : अनवार-ए-करबला (पृष्ठ 21)
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