मंगतों पे नज़र या गंज-ए-शकर आबाद रहे तेरा पाकपतन
मंगतों पे नज़र या गंज-ए-शकर आबाद रहे तेरा पाकपतन
अ'ब्दुल सत्तार नियाज़ी
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रोचक तथ्य
منقبت در شان گنج شکر بابا فریدالدین مسعود (پاک پتن-پنجاب)
मंगतों पे नज़र या गंज-ए-शकर आबाद रहे तेरा पाकपतन
ऐ ख़्वाजा क़ुतुब के नूर-ए-नज़र आबाद रहे तेरा पाकपतन
तिरी दीद को अपनी 'ईद कहें सब तुझ को फ़रीद फ़रीद कहें
देते हैं सदा ख़्वाजा-ए-कलियर आबाद रहे तेरा पाकपतन
यूँ बाबा तिरी बारात सजी पीछे हैं वली आगे हैं नबी
नबियों के नबी भी तेरे घर आबाद रहे तेरा पाकपतन
सहरे की रंगत अजमेरी हैं नूर के तारे हुज्वैरी
मख़्दूम-ओ-निज़ाम पढ़ें मिल कर आबाद रहे तेरा पाकपतन
मैं क्यूँ न फ़रीद फ़रीद कहूँ मैं क्यूँ न तिरी चौखट चूमूँ
है दर तेरा जन्नत का घर आबाद रहे तेरा पाकपतन
हो ख़ैर ग़रीब-नवाज़ी की भरो झोली ग़रीब 'नियाज़ी' की
होती है यहीं मंगतों की गुज़र आबाद रहे तेरा पाकपतन
- पुस्तक : Kulliyat-e-Niyaz
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