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मिरे वुजूद को इतना तू मो'तबर कर दे

इश्तियाक़ आलम शहबाज़ी

मिरे वुजूद को इतना तू मो'तबर कर दे

इश्तियाक़ आलम शहबाज़ी

MORE BYइश्तियाक़ आलम शहबाज़ी

    मिरे वुजूद को इतना तू मो'तबर कर दे

    सना से अपनी मिरी साँसें तर-ब-तर कर दे

    सुख़नवरी को मिरी ऐसा कारगर कर दे

    तिरा हबीब मिरी सम्त भी नज़र कर दे

    तिरे फ़क़ीरों की आँखों में जिन का मस्कन है

    उन्ही उजालों को तू मेरा हम-सफ़र कर दे

    मिरे गुनाहों पे मुझ को ख़ुदाया इतना रुला

    मिरे ही अश्कों से दामन को मिरे तर कर दे

    ख़ुदा है तू तिरी क़ुदरत से कुछ ब'ईद नहीं

    कि मुझ से ज़र्रा-ए-नाचीज़ को गुहर कर दे

    सियाह-ए-शब को जमाल-ए-क़मर दिया कि नहीं

    मिरे भी क़ल्ब में इक नूर जल्वा-गर कर दे

    सियाहियों से लिखी है तिरी सना-ए-जमील

    तू फीकी फीकी सियाही को आब-ए-ज़र कर दे

    सग-ए-मदीना ग़ुलाम-ए-हुसैन ख़ाक-ए-नजफ़

    इन्ही हवालों से महशर में मुश्तहर कर दे

    नफ़स-नफ़स में सुकून-ए-हयात कर दे 'अता

    क़दम-क़दम मिरी आसान रह-गुज़र कर दे

    ख़ुदाया तू ही तो काया पलटने वाला है

    वो लुत्फ़-ए-ख़ास तू मेरे भी हाल पर कर दे

    स्रोत :
    • पुस्तक : Jalwa-e-Gul Lafz-ba-Lafz (पृष्ठ 20)

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