मुझ पे भी चश्म-ए-करम ऐ मिरे आक़ा करना
मुझ पे भी चश्म-ए-करम ऐ मिरे आक़ा करना
हक़ तो मेरा भी है रहमत का तक़ाज़ा करना
मैं कि ज़र्रा हूँ मुझे वुस'अत-ए-सहरा दे-दे
कि तिरे बस में है क़तरे को भी दरिया करना
मैं हूँ बेकस तेरा शेवा है सहारा देना
मैं हूँ बीमार तेरा काम है अच्छा करना
तू किसी को भी उठाता नहीं अपने दर से
कि तिरी शान के शायाँ नहीं ऐसा करना
तेरे सदक़े वो उसी रंग में ख़ुद ही डूबा
जिस ने जिस रंग में चाहा मुझे रुस्वा करना
ये तिरा काम है ऐ आमना के दुर्र-ए-यतीम
सारी उम्मत की शफ़ा'अत तन-ए-तन्हा करना
आल-ओ-अस्हाब की सुन्नत मिरा मे'यार-ए-वफ़ा
तिरी चाहत के 'एवज़ जान का सौदा करना
शामिल-ए-मक़्सद-ए-तख़्लीक़ ये पहलू भी रहा
बज़्म-ए-'आलम को सजा कर तेरा चर्चा करना
मुझ पे महशर में 'नसीर' उन की नज़र पड़ ही गई
कहने वाले उसे कहते हैं ख़ुदा का करना
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