नजफ़-अशरफ़ ज़मीं पर गर न होता
रोचक तथ्य
منقبت درشان حضرت مولیٰ علی (نجف اشرف-عراق)
नजफ़-अशरफ़ ज़मीं पर गर न होता
ज़मीं पर मा'दन-ए-गौहर न होता
नजफ़ गर मस्कन-ए-सरवर न होता
ज़ियारत-गाह-ए-पैग़म्बर न होता
बजा है गर शह-ए-सफ़दर न होता
’अरूस-ए-दीन को ज़ेवर न होता
सुलैमाँ को कहाँ मिली वो ख़ातम
नजफ़-अशरफ़ में गर हैदर न होता
सिकंदर को न मिलती राह-ए-हैवाँ
अगर शाह-ए-नजफ़ रहबर न होता
नजफ़ में गर न करता ख़ाक-रूबी
तो दामन मेहर का पुर-ज़र न होता
अगर शाह-ए-नजफ़ रहते अ'दम में
किसी को हुक्म-ए-हक़ बावर न होता
पयम्बर लहमुका-लहमी न कहते
अगर शाह-ए-नजफ़ हम-सर न होता
अगर रजअ'त न करता ता-क़ियामत
नुमायाँ फिर शह-ए-ख़ावर न होता
अगर सर पर न होता साया-ए-शाह
कभी 'वारिस' बरहना-सर न होता
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