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Sufinama

जो ज़िक्र करे सरवर-ए-'आलम का जहाँ में

उवेस रज़ा अम्बर

जो ज़िक्र करे सरवर-ए-'आलम का जहाँ में

उवेस रज़ा अम्बर

MORE BYउवेस रज़ा अम्बर

    जो ज़िक्र करे सरवर-ए-'आलम का जहाँ में

    तासीर ही तासीर रहे उस की ज़बाँ में

    अतराफ़-ए-जहाँ छान के जिब्रील ये बोले

    तमसील नहीं उन की कोई कौन-ओ-मकाँ में

    ख़ालिक़ ने उन्हें मालिक-ओ-मुख़्तार बनाया

    सरकार की 'अज़्मत है बड़ी दोनों जहाँ में

    मैं लिख भी सकूँगा शह-ए-अबरार की ना'तें

    ये बात आई थी कभी वहम-ओ-गुमाँ में

    हामी है यावर कोई सरकार के जैसा

    तुम ढूँडो अगर लाख पाओगे जहाँ में

    तौसीफ़ मैं करता हूँ शह-ए-दीं की जो या रब

    कर मु'आफ़ अगर नुक़्स मिले मेरे बयाँ में

    जिस पानी में पड़ जाए लु’आब-ए-शह-ए-बतहा

    क्यूँ शहद घुल जाए भला खारे कुआँ में

    अल्लाह ने महबूब की तख़्लीक़ है यूँ की

    तमसील नहीं उन की कोई कौन-ओ-मकाँ में

    उल्फ़त की नज़र से जो कभी देखूँ मैं उस को

    जल्वा तिरी रहमत का नज़र आता है माँ में

    देते ही चले जाते हैं सरकार खज़ाने

    आती ही नहीं कोई कमी गंज-ए-निहाँ में

    ईमान है मज़बूत जिस इंसान का 'अम्बर'

    ला-रैब चला जाएगा वो बाग़-ए-जिनाँ में

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