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‘अली को मुस्तफ़ा का नाइब-ओ-दिलदार कहता हूँ

रज़ी शत्तारी

‘अली को मुस्तफ़ा का नाइब-ओ-दिलदार कहता हूँ

रज़ी शत्तारी

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    रोचक तथ्य

    منقبت درشان حضرت مولیٰ علی (نجف-عراق)

    ‘अली को मुस्तफ़ा का नाइब-ओ-दिलदार कहता हूँ

    ’अली को फ़ातेह-ए-कुल हैदर-ए-कर्रार कहता हूँ

    ’अली को इ'ल्म का दर दीन की दस्तार कहता हूँ

    ‘अली को हर वली का वाली-ओ-सरदार कहता हूँ

    ‘अली को चश्मा-ए-फ़ैज़-ए-शह-ए-अबरार कहता हूँ

    ‘अली को ग़मज़दों का मूनिस-ओ-ग़म-ख़्वार कहता हूँ

    ‘अली को मैं रसूलुल्लाह की तलवार कहता हूँ

    ‘अली को दुश्मनाँ दें पे रब का वार कहता हूँ

    ‘अली के आ'शिक़ों को साहिब-ए-किरदार कहता हूँ

    ‘अली के हासिदों को दीन का ग़द्दार कहता हूँ

    यही मेरा वतीरा है यही मेरा वज़ीफ़ा है

    ‘अली मौला ‘अली मौला हज़ारों बार कहता हूँ

    'रज़ी' हो शा'इरी का हक़ अदा इस वास्ते मैं भी

    मिरे मौला ‘अली की शान में अशआ'र कहता हूँ

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