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Sufinama

वल्लैल जो वो काकुल-ए-ख़मदार पढ़े है

सफ़ीउल आलम शहबाज़ी

वल्लैल जो वो काकुल-ए-ख़मदार पढ़े है

सफ़ीउल आलम शहबाज़ी

MORE BYसफ़ीउल आलम शहबाज़ी

    वल्लैल जो वो काकुल-ए-ख़मदार पढ़े है

    यासीन को दंदान-ए-गुहर-बार पढ़े है

    हुस्न-ए-चमन तेरी हदीस-ए-लब-ओ-रुख़्सार

    हर फूल की पत्ती गुल-ओ-गुलज़ार पढ़े है

    हस्सान को देखो तो ज़रा ना'त-ए-पयम्बर

    मिम्बर पे खड़ा हो के वो हक़दार पढ़े है

    तफ़्सीर तिरे ख़ुल्क़ की ज़ात-ए-रिसालत

    किरदार पढ़े है मिरी गुफ़्तार पढ़े है

    फ़ातेह-ए-'आलम तिरी नुसरत की हिकायत

    ये कोह-ओ-दमन वादी-ओ-कोहसार पढ़े है

    आयात-ए-शिफ़ा को तिरी जान-ए-मसीहा

    पाता है शिफ़ा दिल से जो बीमार पढ़े है

    उतरी थी शब-ए-वस्ल जो ये आयत-ए-इसरा

    अब तक पर-ए-जिब्रील की रफ़्तार पढ़े है

    हर क़तरा-ए-ख़ूँ से जो रक़म हो वही आयत

    दीवाना सर-ए-ख़ंजर-ए-खूँ-ख़्वार पढ़े है

    है कौसरी पैमाने में जो नक़्श हिकायत

    हर घूँट पे साक़ी पढ़े मय-ख़्वार पढ़े है

    हर जाम में तहरीर है जो सूरा-ए-कौसर

    साग़र पढ़े बादा पढ़े सरशार पढ़े है

    ज़ात-ए-मुक़द्दस तिरी ता’ज़ीम का ख़ुत्बा

    ऐवान-ए-हरम का’बा-ओ-मीनार पढ़े है

    मिदहत तिरी सद शौक़ फ़रिश्तों की जमा'अत

    आकर उसी सरकार में सरकार पढ़े है

    'इरफ़ान-ए-मोहब्बत की है तकमील जो आयत

    सिद्दीक़ 'उमर 'उस्मान-ओ-'अली यार पढ़े है

    स्रोत :
    • पुस्तक : Kilk-e-Midhat (पृष्ठ 54)

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