तुम हो आल-ए-मुस्तफ़ा ग़ौस-उल-वरा
रोचक तथ्य
موسیٰ آزاد قوال کی آواز میں فلمی طرز ’’دل کے ارماں۔۔۔‘‘ پر لکھی ہوئی مقبولِ عام منقبت در شان غوث پاک شیخ عبدالقادر جیلانی (بغداد-عراق)
तुम हो आल-ए-मुस्तफ़ा ग़ौस-उल-वरा
ताजदार-ए-औलिया ग़ौस-उल-वरा
जान-ए-ज़हरा जान-ए-हैदर आप हैं
आप का ये सिलसिला ग़ौस-उल-वरा
चोर को अब्दाल तुम ने कर दिया
मर्हबा सद-मर्हबा ग़ौस-उल-वरा
पा-ए-अहमद का निशाँ कंधे पे था
जब हुए जल्वा-नुमा ग़ौस-उल-वरा
आप ने इस्लाम की तब्लीग़ की
तुम पे क़ुर्बां दिल मिरा ग़ौस-उल-वरा
अपने हाथों से पिला दो एक जाम
बादा-ए-’इरफ़ाँ का ग़ौस-उल-वरा
गुलशन-ए-अहमद के तुम इक फूल हो
सब्त-ए-महबूब-ए-ख़ुदा ग़ौस-उल-वरा
अपने साग़र को दिखा दो ख़्वाब में
अपना जल्वा भी ज़रा ग़ौस-उल-वरा
- पुस्तक : Moosa Azad Qawwal, Part 1 (पृष्ठ 4)
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