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सख़ी का दरबार सज रहा है ग़रीब ख़ैरात पा रहे हैं

फ़ना बुलंदशहरी

सख़ी का दरबार सज रहा है ग़रीब ख़ैरात पा रहे हैं

फ़ना बुलंदशहरी

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    रोचक तथ्य

    منقبت در شان داتا گنج بخش علی ہجویری (لاہور-پاکستان)

    सख़ी का दरबार सज रहा है ग़रीब ख़ैरात पा रहे हैं

    उठो मंगतो कि मेरे दाता करम की दौलत लुटा रहे हैं

    नबी के नूर-ए-नज़र हैं दाता 'अली के लख़्त-ए-जिगर हैं दाता

    जो दर पे दाता के रहे हैं वो अपनी बिगड़ी बना रहे हैं

    जो तुम को जन्नत की आरज़ू है ग़ुलामी दाता-पिया की कर लो

    है जन्नती हर ग़ुलाम उन का पयाम तैबा से रहे हैं

    बड़े हैं लज-पाल मेरे दाता बड़ा सख़ी है घराना उन का

    यहाँ जो बन-बन के मँगते आए वो शाह बन-बन के जा रहे हैं

    भरेगी रहमत से उन की झोली मिलेगी महशर में सरफ़राज़ी

    अदब से दाता-पिया के दर पे जो अपने सर को झुका रहे हैं

    तुम्हारी निस्बत ने मेरे दाता ये शान बख़्शी है इस ज़मीं को

    तुम्हारे कूचे में हर क़दम पर फ़रिश्ते आँखें बिछा रहे हैं

    हर एक पर हैं करम की नज़रें 'फ़ना' मैं दाता-पिया के सदक़े

    हमारी औक़ात कुछ नहीं है मगर वो हम को निभा रहे हैं

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