हुदूद-ए-अक़्ल से बाला है अज़मत ग़ौस-ए-आज़म की
रोचक तथ्य
منقبت در شان غوث پاک شیخ عبدالقادر جیلانی (بغداد-عراق)
हुदूद-ए-अक़्ल से बाला है अज़मत ग़ौस-ए-आज़म की
ख़ुदा ही जनता है शान-ए-रिफ़्अत ग़ौस-ए-आज़म की
ज़मीन-ओ-आसमाँ पर है हुकूमत ग़ौस-ए-आज़म की
सभी जिन्न-ओ-बशर को है ज़रूरत ग़ौस-ए-आज़म की
मैं ऐसी नींद सो जाऊँ कि क़िस्मत मेरी खुल जाए
इलाही कर अता मुझको ज़ियारत ग़ौस-ए-आज़म की
वो पल मेरे लिए मेराज से तो कम नहीं होगा
दिखे जो आलम-ए-रोया में सूरत ग़ौस-ए-आज़म की
मुयस्सर सब को होती भी नहीं है क़ादरी उल्फ़त
ख़ुदा की ख़ास रहमत है मुहब्बत ग़ौस-ए-आज़म की
दिवानावार जाकर उनके क़दमों से मैं लिपटूँगा
मुझे महशर में होगी जब ज़ियारत ग़ौस-ए-आज़म की
नज़ारा अहल-ए महशर देखेंगे जब क़ादरीयों का
जहन्नम से बचालेगी अक़ीदत ग़ौस-ए-आज़म की
भला 'सलमान' से कैसे अदा हो मंक़बत उनकी
यक़ीनन इसमें शामिल है इजाज़त ग़ौस-ए-आज़म की
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