सरताज-ए-रुसुल मक्की मदनी सरकार-ए-दो-आ’लम सल्ले-अ'ला
सरताज-ए-रुसुल मक्की मदनी सरकार-ए-दो-आ’लम सल्ले-अ'ला
नबियों के नबी उम्मी लक़बी सरकार-ए-दो-आ’लम सल्ले-अ'ला
तुम सरवर-ए-आलम ख़त्म-ए-रुसुल तुम जग-दाता तुम सय्यद-ए-कुल
हों तुम पे फ़िदा अम्मी-ओ-अबी सरकार-ए-दो-आ’लम सल्ले-अ'ला
है हुस्न की सारी बुल-अजबी ये बू-ज़री और वो बू-लहबी
वाबस्ता कोई बरगश्ता कोई सरकार-ए-दो-आ’लम सल्ले-अ'ला
कुछ अहल-ए-नज़र ने भी शायद पाया है तुम्हें शायद बायद
हक़ ये है हक़ीक़त खुल न सकी सरकार-ए-दो-आ’लम सल्ले-अ'ला
ये दिल की जलन आँखों की नमी सदक़े में तुम्हारे हम को मिली
को दौलत उज़मा हाथ लगी सरकार दो आलम सल अला
कोई अ'रबी कोई अ’जमी कोई हब्शी कोई करनी
ये आतिश-ए-ग़म किस किस के लगी सरकार-ए-दो-आ’लम सल्ले-अ'ला
हूरों की हवस जन्नत की तलब ज़ाहिद को मुबारक हो या-रब
मतलूब मिरा माह-ए-मदनी सरकार-ए-दो-आ’लम सल्ले-अ'ला
अल्लाह अदा यूँ फ़र्ज़ करूँ वो सामने हों मैं अ'र्ज़ करूँ
सरताज-ए-जहाँ नबियों के नबी सरकार-ए-दो-आ’लम सल्ले-अ’ला
क्या दिल की तमन्ना अ'र्ज़ करूँ क़दमों में जियूँ क़दमों पे मरूँ
है लाज तुम्हीं को अब उस की सरकार-ए-दो-आ’लम सल्ले-अ'ला
हो जाए इधर भी चश्म-ए-करम ऐ ख़ुसरव-ए-ख़ूबान-ए-आ’लम
वाबस्ता दामन हैं हम भी सरकार-ए-दो-आ’लम सल्ले-अ'ला
घुट्टी में पड़ा है इ'श्क़-ए-नबी 'कामिल' है उसी से हयात अपनी
हैं मेरी दवा-ए-दर्द-ए-दिली सरकार-ए-दो-आ’लम सल्ले-अ'ला
- पुस्तक : सुरूद-ए-रूहानी (पृष्ठ 138)
- संस्करण : Second
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