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शब जश्न-ए-ख़ालिक़-ए-बहर-ओ-बर

अमीर मीनाई

शब जश्न-ए-ख़ालिक़-ए-बहर-ओ-बर

अमीर मीनाई

MORE BYअमीर मीनाई

    रोचक तथ्य

    तज़मीन-ए-शेर शैख़ सादी

    हसल-उश-शमा बे-जिबालेही

    वसल-उल-असी बे-विसालेही

    अदोबत उयूना मक़ालेही

    अज़ोमत शोयूना सरालेही

    नसोबत लवाओ निवालेही

    होमेदत जमी फ़बालेही

    शरफ़-उस-सुरा बे-ज़लालेही

    सबक-उस-समा बे-निआलेही

    निस्बत लिवाए निवालेही

    बलग़-अल-उ'ला बे-कमालेही

    कशफ़-उद-दुजा बे-जमालेही

    हसुनत जमी ख़िसालेही

    सल्लू अलैहे आलेही

    गुहर मुहीत-ए-अता-ए-रब

    क़मर समा-ए-सख़ा-ए-रब

    शजर रियाज़-ए-रजा-ए-रब

    समर निहाल-ए-दिला-ए-रब

    गुल-बाग़-ए-नशव-ओ-नुमा-ए-रब

    निगह-ए-आश्ना-ए-अदा-ए-रब

    ब-कमाल-ए-शौक़-ए-रज़ा-ए-रब

    वो हुमा-ए-औज-ए-हवा-ए-रब

    बलग़-अल-उ'ला बे-कमालेही

    कशफ़-उद-दुजा बे-जमालेही

    हसुनत जमी ख़िसालेही

    सल्लू अलैहे आलेही

    शब जश्न-ए-ख़ालिक़-ए-बहर-ओ-बर

    जो तलब हुई तो बंधी कमर

    सफ़-ए-अंबिया थी इधर-उधर

    वो नुजूम में सिफ़त-ए-क़मर

    चमन-ए-जनाँ के खुले थे दर

    लगे झूमने शजर-ओ-समर

    हुए जिब्रईल जो राहबर

    तो सवार हो के बुर्राक़ पर

    बलग़-अल-उ'ला बे-कमालेही

    कशफ़-उद-दुजा बे-जमालेही

    हसुनत जमी ख़िसालेही

    सल्लू अलैहे आलेही

    जो इधर से शौक़-लक़ा हुआ

    तो उधर से शौक़-ए-सिवा हुआ

    जो जनाब बन के जुदा हुआ

    वही क़तरा ऐन-ए-बक़ा हुआ

    अलिफ़ एक था दोता हुआ

    था अगरचे मद से बढ़ा हुआ

    करो गुमान कि क्या हुआ

    सर-ए-अर्श है ये लिखा हुआ

    बलग़-अल-उ'ला बे-कमालेही

    कशफ़-उद-दुजा बे-जमालेही

    हसुनत जमी ख़िसालेही

    सल्लू अलैहे आलेही

    कभी का'बे शाह-ए-ज़माँ गए

    सू-ए-चार-सम्त-ए-जहाँ गए

    ग़रज़ इस सफ़र में जहाँ गए

    मलक-ओ-नबी भी वहाँ गए

    सर-ए-हफ़्त-चर्ख़-ए-रवाँ गए

    पए सैर-ए-हश्त-जनाँ गए

    जो वहाँ से बढ़ के दवाँ गए

    रहे दंग सब कि कहाँ गए

    बलग़-अल-उ'ला बे-कमालेही

    कशफ़-उद-दुजा बे-जमालेही

    हसुनत जमी ख़िसालेही

    सल्लू अलैहे आलेही

    हुए आप दाख़िल-ए-बज़्म-ए-हू

    वो चमन कि रंग-ए-वहाँ बू

    नबी-ओ-मलाएक नेक-ख़ू

    रहे आस्ताने पे सुर्ख़-रू

    रही सब के कानों को आरज़ू

    सुनी किसी ने वो गुफ़्तुगू

    जो फिरे वहाँ से वो सुर्ख़-रू

    यही ग़लग़लः था हर एक सू

    बलग़-अल-उ'ला बे-कमालेही

    कशफ़-उद-दुजा बे-जमालेही

    हसुनत जमी ख़िसालेही

    सल्लू अलैहे आलेही

    किए ख़लक़ हक़ ने जो अंबिया

    उन्हें एक एक शरफ़ मिला

    जो कलीम को यद-ए-पुर-ज़िया

    तो मसीह को दम-ए-जाँ-फ़ज़ा

    ख़लील का है चमन छुपा

    निहाँ है दुंबा ज़बीह का

    मगर उन में ख़ास हैं मुस्तफ़ा

    कि ख़ुदा ने आप बला लिया

    बलग़-अल-उ'ला बे-कमालेही

    कशफ़-उद-दुजा बे-जमालेही

    हसुनत जमी ख़िसालेही

    सल्लू अलैहे आलेही

    वो नसीम-ए-गुलशन-ए-कुन-फ़काँ

    वो शमीम-ए-रौज़ः-ए-जावेदाँ

    वो क़मर-ए-ख़दम फ़लक-आस्ताँ

    वो क़ज़ा अलम वो क़द्र निशाँ

    वो हमा-ए-फ़र्क़-ए-पयमबराँ

    वो मुसाफ़िर-ए-रह-ए-ला-मकाँ

    वो ज़िया-ए-दीदः-ए-क़ुदसीयाँ

    जो चला कहाँ से गया कहाँ

    बलग़-अल-उ'ला बे-कमालेही

    कशफ़-उद-दुजा बे-जमालेही

    हसुनत जमी ख़िसालेही

    सल्लू अलैहे आलेही

    वही ख़त्म-ए-सुन'-ए-आलाह है

    वही उम्मतों की पनाह है

    वही शाह-ए-नजम-ए-सिपाह है

    वो फ़र्क़-ए-दीं पे कुलाह है

    वही जिन्न-ओ-इंस का शाह है

    वही ख़िज़्र-ए-राह-ए-रफ़ाह है

    बहुत उस की शौकत-ओ-जाह है

    ये सिफ़त-ए-शरफ़ पे गवाह है

    बलग़-अल-उ'ला बे-कमालेही

    कशफ़-उद-दुजा बे-जमालेही

    हसुनत जमी ख़िसालेही

    सल्लू अलैहे आलेही

    ये जहान-ए-दयार उसी का है

    वो जहान-ए-हिसार उसी का है

    उधर इख़्तियार उसी का है

    उधर इक़्तिदार उसी का है

    क़दम उस्तुवार उसी का है

    अलम इफ़्तिख़ार उसी का है

    करम-ए-इश्तिहार उसी का है

    शरफ़ आश्कार उसी का है

    बलग़-अल-उ'ला बे-कमालेही

    कशफ़-उद-दुजा बे-जमालेही

    हसुनत जमी ख़िसालेही

    सल्लू अलैहे आलेही

    वही नौ-बहार-ए-रियाज़-ए-दीं

    वही समरः-ए-शजर-ए-यकीं

    जो वली हैं उन के ख़ोशा-चीं

    जो नबी हैं उन के वहीं मुईं

    यम-ए-अम्बिया में दुर्र-ए-समीं

    दम-ए-हश्र शाफ़-ए-निद्द-ए-नबीं

    फ़लक-आस्ताँ वो सर-ज़मीं

    सर-ए-अर्श जा के हुए मकीं

    बलग़-अल-उ'ला बे-कमालेही

    कशफ़-उद-दुजा बे-जमालेही

    हसुनत जमी ख़िसालेही

    सल्लू अलैहे आलेही

    मिस-ए-क़ल्ब-ए-'अमीर' तला करो

    सीय आईन: को जिला करो

    दिल-ओ-जान को सिर्फ़ दला करो

    कि दिला-ए-ख़ास-ए-ख़ुदा करो

    यही नाम मुँह से लिया करो

    यही विर्द सुब्ह-ओ-मसा करो

    जो ज़बान है तो सना करो

    यही मिम्बरों पे पढ़ा करो

    बलग़-अल-उ'ला बे-कमालेही

    कशफ़-उद-दुजा बे-जमालेही

    हसुनत जमी ख़िसालेही

    सल्लू अलैहे आलेही

    स्रोत :
    • पुस्तक : महामिद-ए-ख़ातिमुन नबिय्यीन (पृष्ठ 164)
    • रचनाकार : अमीर मीनाई
    • प्रकाशन : मत्बः मुंशी नवल किशोर, लखनऊ (1930)

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