Font by Mehr Nastaliq Web
Sufinama

अपने में दिखाता है जो अल्लाह का जल्वा अजमेर का ख़्वाजा

आशिक़ हैदराबादी

अपने में दिखाता है जो अल्लाह का जल्वा अजमेर का ख़्वाजा

आशिक़ हैदराबादी

MORE BYआशिक़ हैदराबादी

    रोचक तथ्य

    منقبت در شان غریب نواز خواجہ معین الدین چشتی (اجمیر-راجستھان)

    अपने में दिखाता है जो अल्लाह का जल्वा अजमेर का ख़्वाजा

    मौजूद हुआ बन के मोहम्मद का सरापा अजमेर का ख़्वाजा

    तनज़ीह से तश्बीह में पहुँचा है जो कर वो सिर्र-ए-मज़हर

    कहलाता है मख़्लूक़-ए-जहाँ में वही बंदा अजमेर का ख़्वाजा

    मौज और हुबाब आप ही बनता है जो साफ़ आब कसरत में है गिर्दाब

    वहदत के अहाता में नज़र आया है दरिया अजमेर का ख़्वाजा

    जो कुछ है ये है उस का नहीं कोई भी हम-सर ये अपना है रहबर

    ला-सानी-ओ-बे-मिस्ल है और अरफ़ा'-ओ-आ'ला अजमेर का ख़्वाजा

    जो ज़ात ख़ुदा की है मोहम्मद की सिफ़त में सब ग़ौर से समझें

    अहमद की हक़ीक़त ही का मुतलक़ है नज़ारा अजमेर का ख़्वाजा

    हिन्द और दकन में है फ़क़त उस का ही फ़ैज़ान ये अपना है ईमान

    पैग़ाम्बर-ए-हिंद है ये पीर हमारा अजमेर का ख़्वाजा

    बतहा को तवाफ़ उस के जो गुंबद का है हासिल ये कहते हैं 'कामिल'

    हिन्द और दकन में है यही क़िबला-ओ-का'बा अजमेर का ख़्वाजा

    हिन्द और दकन उस की विलायत से है आबाद है सिलसिला-ए-ईजाद

    'आलम में रवाँ कर गया ख़ुद अपना तरीक़ा अजमेर का ख़्वाजा

    ये मुलक का अपने है बड़ा एक शहंशाह सब उस की है पागाह

    रखता है ज़माना में सुलैमान का सा रुतबा अजमेर का ख़्वाजा

    अन्नासु 'अला दीनिन से है हासिल ये ही मतलब बंदा हूँ मैं वो रब

    मैं ताबे'-ए-फ़रमाँ हूँ है मुतलक़ मिरा मौला अजमेर का ख़्वाजा

    हर एक नफ़स उस की तरफ़ है जो मिरा ध्यान ताअ'त का है सामान

    ख़ुद अबरुओं से रखता है महराब हरम का अजमेर का ख़्वाजा

    है चिश्त का बाज़ार बहुत गर्म हमेशा ऐसा नहीं देखा

    बै'अत जो की अब ख़ूब मिरा बन गया सौदा अजमेर का ख़्वाजा

    है चिश्त की आतिश ये बहुत तीर-ए-अज़ल से मूसा से समझ ले

    ख़ुर्शीद से वो चंद बना तूर का शो'ला अजमेर का ख़्वाजा

    में मर्द मुवह्हिद हूँ कि यकसाँ हैं सभी यहाँ गर 'इश्क़ है पहचान

    घूँघट में वो महबूब है रखता नहीं परवा अजमेर का ख़्वाजा

    ये रम्ज़ है बारीक समझ ले तु मिरी बात रह फ़िक्र में दिन रात

    रखता है 'अजीब भेद ये दीदा शुनीदा अजमेर का ख़्वाजा

    हरगिज़ नहीं शा'इर सा ग़ुलू मेरे सुख़न में शाएक़ जो हो देखें

    'उश्शाक़ की निस्बत के लिए पीर है यक्ता अजमेर का ख़्वाजा

    सौ जान से होता हूँ फ़िदा क़दमों पे उस के कहता हूँ ये दिल से

    'आशिक़ जो बना हूँ मैं वो महबूब है मेरा अजमेर का ख़्वाजा

    वीडियो
    This video is playing from YouTube

    Videos
    This video is playing from YouTube

    अज्ञात

    अज्ञात

    स्रोत :

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY

    Jashn-e-Rekhta | 13-14-15 December 2024 - Jawaharlal Nehru Stadium , Gate No. 1, New Delhi

    Get Tickets
    बोलिए