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मिरी नज़र में है रौज़ा तिरा ग़रीब-नवाज़

कामिल शत्तारी

मिरी नज़र में है रौज़ा तिरा ग़रीब-नवाज़

कामिल शत्तारी

MORE BYकामिल शत्तारी

    रोचक तथ्य

    منقبت درشان غریب نواز خواجہ معین الدین حسن چشتی (اجمیر۔راجستھان)

    मिरी नज़र में है रौज़ा तिरा ग़रीब-नवाज़

    निगाह-ए-शौक़ है क़िबला-नुमा ग़रीब-नवाज़

    तिरा वजूद है जान-ए-बहार गुलशन-ए-चिश्त

    तुझी से निकहत हर गुल है या ग़रीब-नवाज़

    रसूल हक़ की अ'ता और तुम अ'ता-ए-रसूल

    जो तुम मिले तो सभी कुछ मिला ग़रीब-नवाज़

    तुम्हारे दर से हज़ारों ग़रीब पलते हैं

    तुम्हारे कूचे की सारी फ़ज़ा ग़रीब-नवाज़

    तुम्हारा दर्द है सरमाया-ए-हयात मिरा

    ख़ुदा करे कि ये हो ला-दवा ग़रीब-नवाज़

    ब-हक़-ए-ख़्वाजा-ए-उ'स्माँ इधर भी चश्म-ए-करम

    तुम्हारे दर का हूँ मैं भी गदा ग़रीब-नवाज़

    समझ में आएगा इमदाद कैसे होती है

    ज़रा तड़प के पुकारो तो या ग़रीब-नवाज़

    ज़िया हैं शम्'-ए'-रिसालत की नाम कुछ भी सही

    मुझे तो एक हैं ग़ौस-उल-वरा ग़रीब-नवाज़

    हुज़ूर आप का ऐसा भी इक ग़ुलाम सही

    निबाह देखिए 'कामिल' को या ग़रीब-नवाज़

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    अक़ील और शकील वारसी

    अक़ील और शकील वारसी

    स्रोत :
    • पुस्तक : सुरूद-ए-रूहानी (पृष्ठ 170)
    • रचनाकार : Meraj Ahmed Nizami
    • संस्करण : Second

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