बहार-ए-बाग़-ए-जन्नत है बहार-ए-रौज़ा-ए-साबिर
रोचक तथ्य
منقبت درشان صابر پاک حضرت علی احمد (کلیر۔اترا کھنڈ)
बहार-ए-बाग़-ए-जन्नत है बहार-ए-रौज़ा-ए-साबिर
ज्वार-ए-अ’र्श-ए-आ’ला है ज्वार-ए-रौज़ा-ए-साबिर
यहाँ बे-पर्दा अल्लाह-ओ-नबी की दीद होती है
हमें मक्का मदीने है दयार-ए-रौज़ा-ए-साबिर
ज़मीं कलियर की रौज़ा की फ़ज़ा पर नाज़ करती है
फ़लक होता है फिर फिर कर निसार-ए-रौज़ा-ए-साबिर
यहाँ पर मुर्दा-दिल आकर हयात-ए-ताज़ा पाता है
बहार-ए-जावेदाँ है हमकनार-ए-रौज़ा-ए-साबिर
रहे रंगीं चमन ख़ून-ए-शहीदान-ए-मोहब्बत से
सदा फूले-फले ये लाला-ज़ार-ए-रौज़ा-ए-साबिर
बनाऊँ ग़ाज़ा रुख़्सार-ए-ईमाँ ख़ाक-ए-कलियर की
मिरी आँखों का सुर्मा हो ग़ुबार-ए-रौज़ा-ए-साबिर
तसव्वुर से नज़र में कौंदती हैं बिजलियाँ 'बेदम'
अ'जब पुर-नूर हैं नक़्श-ओ-निगार-ए-रौज़ा-ए-साबिर
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