तिरी शान सब से जुदा ग़ौस-ए-आ'ज़म
रोचक तथ्य
منقبت درشان غوث اعظم شیخ عبدالقادر جیلانی (بغداد۔عراق)
तिरी शान सब से जुदा ग़ौस-ए-आ'ज़म
न पहुँचे तुझे औलिया ग़ौस-ए-आ'ज़म
जमाल-ए-रसूल-ए-ख़ुदा ग़ौस-ए-आ'ज़म
जलाल-ए-'अली मुर्तज़ा ग़ौस-ए-आ'ज़म
मिज़ाज-ए-हुसैन-ए-इब्न-ए-ज़हरा के वारिस
शबीह-ए-हसन मुजतबा ग़ौस-ए-आ'ज़म
इजाबत बढ़े पेशवाई को आगे
उठाएँ जो दस्त-ए-दुआ' ग़ौस-ए-आ'ज़म
न क्यूँ हल हों मुश्किल से मुश्किल मसाइल
कि हैं इब्न-ए-मुश्किल-कुशा ग़ौस-ए-आ'ज़म
रसूलों के अंदाज़ नबियों के तेवर
वदीअ'त हुए तुझ को या ग़ौस-ए-आ'ज़म
ज़माने का हर पीर ज़ेर-ए-क़दम है
हैं ऐसे जगत पेशवा ग़ौस-ए-आ'ज़म
पहुँचती है फिर कैसे नुसरत ख़ुदा की
ज़रा कह के तो देख या ग़ौस-ए-आ'ज़म
नहीं है कोई और सारे जहाँ में
मिरा पीर तेरे सिवा ग़ौस-ए-आ'ज़म
ज़रा जल्वा-ए-मुस्तफ़ा मैं भी देखूँ
ज़रा सूरत अपनी दिखा ग़ौस-ए-आ'ज़म
तिरा दौर अफ़्सोस पाया न मैं ने
कभी ख़्वाब ही में तो आ ग़ौस-ए-आ'ज़म
न उट्ठे हैं ख़ाली न उट्ठेंगे ख़ाली
तिरे दर से तेरे गदा ग़ौस-ए-आ'ज़म
'इनायत से भर दीजिए मेरी झोली
करम कीजिए आज या ग़ौस-ए-आ'ज़म
मसाइब के तूफ़ाँ से टकरा रहा हूँ
में ले कर तेरा आसरा ग़ौस-ए-आज़म
हुआ है न होगा न है इस जहाँ में
कोई और तेरे सिवा ग़ौस-ए-आज़म
कुजा यक गदा-ओ-कुजा शाह-जीलाँ
कुजा यक फ़क़ीर-ओ-कुजा ग़ौस-ए-आज़म
सुनाऊँ न क्यूँ उन को अफ़्साना-ए-दिल
कि हैं मेरे दर्द-आश्ना ग़ौस-ए-आज़म
अगर इन से लो दरस-ए-तौहीद तुम भी
तो कर दें तुम्हें क्या से क्या ग़ौस-ए-आज़म
दुरुस्ती अक़ाएद की कर लो यहाँ पर
कि हैं क़िब्ला-ए-हक़-नुमा ग़ौस-ए-आज़म
'नसीर' आज आया है बन कर सवाली
इसे भी मिले भीक या ग़ौस-ए-आज़म
- पुस्तक : कुल्लियात-ए-नसीर गिलानी (पृष्ठ 1188)
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