तुम शाह-ए-विलायत हो अमीर-ए-दोसरा हो
रोचक तथ्य
منقبت درشان حضرت شاہ عبدالمنعم کنزالمعرفت شاہ ولایت (دیوہ۔ہندوستان)
तुम शाह-ए-विलायत हो अमीर-ए-दोसरा हो
मौला हो मिरे क़ौम नसीरी के ख़ुदा हो
शादाबी-ए-गुलज़ार-ओ-आ'लम तुम्हीं से
तुम पर तो आईना-ए-लौलाक लम्मा हो
जब अहमद बे-मीम कहें लहमक लहमी
फिर कौन कहे तुम को कि तुम कौन हो क्या हो
मोहताज को ख़ाली दर-ए-अक़्दस से न फेरो
मलजा-ए-ग़रेबान हो मुल्ला ज़ुलफ़्क़र हो
है ज़ेर-ए-नगीं ममलकत-ए-सब्र-ओ-तवक्कुल
तुम बादशाह-ए-किश्वर-ए-तस्लीम-ओ-रज़ा हो
हाँ राकिब-ए-दोश-ए-नबवी कौन है तुम हो
तुम हैदर-ए-कर्रार हो तो तुम शेर-ए-ख़ुदा हो
हमनाम-ए-ख़ुदा के भी अ'ली नाम-ए-ख़ुदा हो
अल्लाह का जो घर है वो मौलिद है तुम्हारा
क्या लुत्फ़ हो पी-पी के लब-ए-चश्मा-ए-कौसर
हर मस्त कहे साक़ी-ए-कौसर का भला हो
ऐ शाह-ए-नजफ़ शबर-ओ-शब्बीर का सदक़ा
मुझ तिश्ना-ए-दीदार को इक जाम-ए-अ'ता हो
तुम चारा-ए-आ'लम हो जो बे-चारा है 'बेदम'
मोहताज है ये तुम तो अमीर-उल-उमरा हो
- पुस्तक : कुल्लियात-ए-बेदम (पृष्ठ 389)
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