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Sufinama

तमन्ना थी कि हम भी रौज़ा-ए-सरकार पर जाते

उसैदुल हक़ क़ादरी

तमन्ना थी कि हम भी रौज़ा-ए-सरकार पर जाते

उसैदुल हक़ क़ादरी

MORE BYउसैदुल हक़ क़ादरी

    तमन्ना थी कि हम भी रौज़ा-ए-सरकार पर जाते

    जहाँ पर 'आशिक़ों का आज मेला लगा होगा

    फ़रिश्ते 'अर्श से बहर सलामी रहे होंगे

    पर रूहुल-अमीं जारूब रौज़ा बन गया होगा

    अदब-गाहेस्त ज़ेर-ए-आसमाँ अज़ 'अर्श-ए-नाज़ुक-तर

    जुनैद-ए-वक़्त भी पास-ए-नफ़स कर के खड़ा होगा

    किसी के बख़्त की ज़ुल्फ़ें सँवारी जा रही होंगी

    किसी का बख़्त ख़्वाबीदा जगाया जा रहा होगा

    उधर आक़ा नवासों का उतारा बाँटते होंगे

    इधर बैतुश्शरफ़ वालों का सदक़ा बट रहा होगा

    बुसीरी जामी-ओ-क़ुदसी क़साएद लिख रहे होंगे

    कोई हस्सान ना'त-ए-सरवर-ए-दीं पढ़ रहा होगा

    कोई सुर्मा बनाता होगा ख़ाक-ए-राह-ए-तैबा को

    किसी को जज़्ब-ए-उल्फ़त उन की जानिब खींचता होगा

    सदाक़त का 'अदालत का सख़ावत का शुजा'अत का

    इमामत का विलायत का ख़ज़ाना बट रहा होगा

    गुनहगारों सियह-कारों ख़ता-कारों का तैबा में

    शफ़ा'अत की सनद लेने को मेला लग गया होगा

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