तख़य्युल से वरा है इज़्ज़-ओ-जाह-ए-मुफ़्ती-ए-आ’ज़म
रोचक तथ्य
منقبت درشان مفتئی اعظم ہند حضرت مصطفیٰ رضا خاں (بریلی۔اترا پردیش)
तख़य्युल से वरा है इज़्ज़-ओ-जाह-ए-मुफ़्ती-ए-आ’ज़म
निशान-ए-औज-ओ-रिफ़अ’त है कुलाह-ए-मुफ़्ती-ए-आ’ज़म
सुलूक-ओ-मा’रिफ़त की सारी मंज़िल तय कराती है
तसव्वुफ़ की डगर है शाह-राह-ए-मुफ़्ती-ए-आ’ज़म
अ’क़ीदत-केश का ताँता बंधा रहता है हर लम्हा
है जा-ए-ख़ैर-ओ-बरकत ख़ानक़ाह-ए-मुफ़्ती-ए-आ’ज़म
है गुज़री ज़िंदगी सरकार की सुन्नत के साँचे में
बताती है यही शाम-ओ-पगाह-ए-मुफ़्ती-ए-आ’ज़म
बरा-ए-हिफ़्ज़-ए-नामूस-ए-हबीब-ए-ख़ालिक़-ए-अकबर
कमर-बस्ता हमेशा है सिपाह-ए-मुफ़्ती-ए-आ’ज़म
यका-यक दूर हो जाए दरून-ए-दिल की वीरानी
कभी पड़ जाए जो नूर-ए-निगाह-ए-मुफ़्ती-ए-आ’ज़
यहाँ आठों पहर सजती है अहल-ए-इ'श्क़ की महफ़िल
मोहब्बत का हरम है बारगाह-ए-मुफ़्ती-ए-आ’ज़म
उसे महशर में भी मिल जाएगी जा-ए-अमाँ 'वासिफ़'
जिसे हासिल है दुनिया में पनाहा-ए-मुफ़्ती-ए-आ’ज़म
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