हक़ रसा हक़ आश्ना रश्क-ए-जहाँ अमझर में है
रोचक तथ्य
منقبت درشان سیدنا پاک حضرت محمد قادری (اورنگ آباد۔بہار)
हक़ रसा हक़ आश्ना रश्क-ए-जहाँ अमझर में है
वारिस-ए-इ’ल्म शह-ए-कौन-ओ-मकाँ अमझर में है
जिस की निकहत से मशाम-ए-सुन्नियत है इ’त्र-बेज़
वो सियादत का गुल-ए-अं’बर-फ़शाँ अमझर में है
आओ देखो रहरवान-ए-राह-ए-इ’र्फ़ान-ओ-सुलूक
हज़रत-ए-ग़ौसुल-वरा का इक निशाँ अमझर में है
हर तरफ़ उतरा हुआ है ख़ुशबुॶों का क़ाफ़िला
रूह-परवर दिल-नशीं दिल-कश-समाँ अमझर में है
वाक़िफ़-ए-कुर्ब-ए-दरूँन-ए-मुफ़्लिस-ओ-मफ़्लूक-हाल
चारा-साज़-ओ-हामियान-ए-बे-अमाँ अमझर में है
साइलीन-ए-दहर का है जिस जगह जम्म-ए-ग़फ़ीर
मा’दिन-ए-लुत्फ़-ओ-अ’ता वो आस्ताँ अमझर में है
जिस के इक नुक्ते में है आबाद हिकमत का जहाँ
वो उ’लूम-ओ-फ़ज़्ल का कोह-ए-गिराँ अमझर में है
नाशिर-ए-पैग़ाम-ए-महबूब-ए-ख़ुदा-ए-लम-यज़ल
आ'मिल-ए-फ़रमान शाह-ए-मुरसिलाँ अमझर में है
काँप उठता है ये सुन कर हिज़्ब-ए-आ’दा का वजूद
बहर-ए-गुस्ताख़-ए-नबी तीर-ओ-सिनाँ अमझर में है
जिन को कहता है जहाँ 'वासिफ़' मोहम्मद क़ादरी
ख़ाक के नीचे वो रश्क-ए-आसमाँ अमझर में है
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