या शाह-ए-शरफ़ अहमद-ए-यहया-ए-मनेरी
रोचक तथ्य
منقبت در شان مخدوم الملک حضرت شیخ شرف الدین احمد یحییٰ منیری (بہار شریف-نالندہ)
बरतर है मिरी फ़िक्र से वो ज़ात है तेरी
करता हूँ अदब से तिरी ख़िदमत में दिलेरी
दरवाज़े का तेरे हूँ गदा भीक दे मेरी
महरूम न कर मेरी तू है साल की फेरी
या शाह-ए-शरफ़ अहमद-ए-यहया-ए-मनेरी
दरवाज़े पे तेरे जो कोई इ'ज्ज़ से आवे
अलबत्ता यक़ीं है कि वो महरूम न जावे
क़िस्मत में अगर उस के न हो तो भी वो पावे
तू वो है कि तक़दीर के लिक्खे को बनावे
या शाह-ए-शरफ़ अहमद-ए-यहया-ए-मनेरी
अब हाल पे मेरे भी हो ऐ शाह-ए-तरह्हुम
है जोश ख़ातिर से मिरे दिल पे तलातुम
जो अ'क़्ल मिरी होगई अब सर-ब-सर ही ग़म
फिर तुझ से सिवा जाँ करूँ मैं किस से तकल्लुम
या शाह-ए-शरफ़ अहमद-ए-यहया-ए-मनेरी
कौनैन की लज़्ज़त तू मुझे बख़्श ख़ुदावंद
इस दर्द-ओ-मुसीबत में रहूँ ताके तू ता-चंद
है हिर्स-ओ-हवा का ये मिरा दिल तो नज़र-बंद
है बे-ख़बरी बे-ख़बरी मुझ में ख़ुदावंद
या शाह-ए-शरफ़ अहमद-ए-यहया-ए-मनेरी
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