याद-ए-नबी का गुलशन महका-महका लगता है
याद-ए-नबी का गुलशन महका-महका लगता है
महफ़िल में मौजूद हैं आक़ा ऐसा लगता है
नाम-ए-मोहम्मद कितना मीठा-मीठा लगता है
प्यारे नबी का ज़िक्र भी हम को प्यारा लगता है
लब पे नग़्मे सल्ले-'अला के हाथों में कश्कोल
देखो तो सरकार का मंगता कैसा लगता है
आँखों में मा-ज़ाग़ का कजला सर ताहा का ताज
कैसे कहूँ कमली वाला हम जैसा लगता है
ग़ौस क़ुतुब अब्दाल क़लंदर सब उन के मोहताज
मेरा दाता हर दाता का दाता लगता है
औ अदना की सेज सजी है 'अर्श-ए-बरीं पर आज
हक़ का दुलारा बाँध के सेहरा दूल्हा लगता है
आओ सुनाएँ अपने नबी को अपने मन की बात
इन के 'अलावा कौन 'नियाज़ी' अपना लगता है
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