जवाब-ए-ख़रगोश नख़्चीराँ रा
ख़रगोश का शिकारों को जवाब देना और मोहलत चाहना
गुफ़्त ऐ याराँ हक़म इल्हाम दाद
मर ज़'ईफ़े रा क़वी रा-ए-फ़िताद
उसने कहा ऐ दोस्तो मुझे ख़ुदा ने ’इल्हाम किया है
एक कमज़ोर की समझ में मज़बूत राय आ गई है
आंचे हक़ आमोख़्त मर ज़ंबूर रा
आँ न-बाशद शेर रा-ओ-गोर रा
अल्लाह ने जो कुछ शहद की मक्खी को सिखा दिया है
वो शेर और गोरख़र को मुयस्सर नहीं है
ख़ानः-हा साज़द पुर-अज़ हलवा-ए-तर
हक़ बरू आँ 'इल्म रा ब-गुशाद दर
वो तर हलवे से भरे हुए ख़ाने बनाती है
अल्लाह ने उस ’इल्म का दरवाज़ा उस पर खोल दिया है
आँ-चे हक़ आमोख़्त किर्म-ए-पील: रा
हेच पीले दानद आँ गूँ हीलः रा
जो कुछ अल्लाह ने रेशम के कीड़े को सिखा दिया है
उस तरह की तदबीर कोई हाथी जानता है?
आदम-ए-ख़ाकी ज़ हक़ आमोख़्त 'इल्म
ता-ब-हफ़्तुम आसमाँ अफ़्रोख्त़ 'इल्म
मिट्टी के आदम ने अल्लाह से ’इल्म सीखा
’इल्म ने सातवाँ आसमान तक रौशन कर दिया
नाम-ओ-नामूस-ए-मलक रा दर शिकस्त
कूरी-ए-आँ-कस कि दर हक़ दर गुज़श्त
फ़रिश्तों की ’इज़्ज़त-ओ-आबरू को शिकस्त दे दी
उस शख़्स के अंधेपन ने जो अल्लाह के मु’आमला में शक करता है
ज़ाहिद-ए-चन्दीं हज़ाराँ साल: रा
पोज़-बंदे साख़्त आँ गोसाल: रा
छः लाख बरस के ज़ाहिद के
पोज़-बंद चढ़ा दिया, उस बछड़े के
ता न-दानद शेर-ए-'इल्म-ए-दीं कशीद
ता न-गर्दद गिर्द-ए-आँ क़स्र-ए-मशीद
ताकि ’इल्म-ए-दीन का दूध न पी सके
ताकि उस मज़बूत क़िला’ के चक्कर न काटे
'इल्म-हा-ए-अहल-ए-हिस शुद पोज़-बंद
ता न-गीरद शेर ज़ाँ इ'ल्म-ए-बुलंद
अहल-ए-हिस के ’उलूम, पोज़-बंद बन गए
ताकि वो आ’ला ’इल्म के दूध को न पी सकें
क़तरः-ए-दिल रा यके गौहर फ़िताद
काँ ब-दरिया-हा-ओ-गर्दूँ-हा न-दाद
क़तरा-ए-दिल को ऐसा गौहर ’अता हुआ है
जो दरियाओं और आसमानों को न दिया
चंद सूरत आख़िर ऐ सूरत-परस्त
जान-ए-बे-मा'नीत अज़ सूरत न-रस्त
ऐ सूरत के पुजारी, आख़िर सूरत (परस्ती) कब तक
तेरे बे-मा’नी जान ने सूरत से रिहाई न पाई
गर ब-सूरत आदमी इंसाँ बुदे
अहमद-ओ-बू-जहल ख़ुद यकसाँ बुदे
अहमद सल्लल्लाहु ’अलैहि व-सल्लम और बू-जह्ल बुत-ख़ाने में गए
उनके जाने और उसके जाने में गहरा फ़र्क़ है
नक़्श बर दीवार मिस्ल-ए-आदम अस्त
ब-निगर अज़ सूरत चे चीज़-ए-ऊ कमस्त
दीवार की तस्वीर आदमी जैसी है
ग़ौर कर उसकी सूरत में क्या चीज़ कम है
जाँ गुमस्त आँ सूरत-ए-बा-ताब रा
रौ ब-जू आँ गौहर-ए-कम-याब रा
दीवार की तस्वीर आदमी जैसी है
ग़ौर कर उसकी सूरत में क्या चीज़ कम है
शुद सर-ए-शेरान-ए-'आलम जुम्लः पस्त
चूँ सग-ए-असहाब रा दादंद दस्त
दुनिया के तमाम शेरों का सर झुक गया
जब (क़ज़ा-ओ-क़द्र) ने असहाब-ए-कहफ़ के कुत्ते को ग़लबा दे दिया
चे ज़ियानस्तश अज़ आँ नक़्श-ए-नुफ़ूर
चूँकि जानश ग़र्क़ शुद दर बहर-ए-नूर
उस क़ाबिल-ए-नफ़रत सूरत से उसको क्या नुक़्सान है
जब कि उसकी रूह नूर के समुंद्र में डूबी हुई है
वस्फ़-ए-सूरत नीस्त अंदर ख़ाम-हा
'आलिम-ओ-'आदिल बुवद दर नाम-हा
कलमों में सूरत की ता’रीफ़ (लिखने का रिवाज) नहीं है
ख़तों में, ’आलिम और ’आदिल (लिखा) होता है
'आलिम-ओ-'आदिल हमः मा'नीस्त बस
किश न-याबी दर मकान-ओ-पेश-ओ-पस
’आलिम और ’आदिल सब मा’नी हैं फ़क़त
जिनको तू आगे और पीछे किसी जगह नहीं पाएगा
मी ज़नद बर तन ज़ सू-ए-ला-मकाँ
मी न-गुंजद दर फ़लक ख़ुर्शीद-ए-जाँ
ये ला-मकाँ से जिस्म पर वारिद होते हैं
जान का सूरज, आसमान में नहीं समा सकता है
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