न-गिरेस्तन-ए-'इज़्राईल बर मर्दे-ओ-गुरेख़्तन-ए-आँ मर्द दर सरा-ए-सुलैमान-ओ-तक़रीर-ए-तर्जीह-ए-तवक्कुल बर जेहद-ओ-क़िल्लत-ए-फ़ाइदः जेहद
इज़्राईल ’अलैहिस्सलाम का एक शख़्स को घूरना और उसका सुलौमान ’अलैहिस्सलाम के घर की तरफ़ भागना और तवक्कुल की मशक़्क़त और कोशिश पर तर्जीह की तक़रीर
राद-ए-मर्दे चाश्त-गाहे दर रसीद
दर सरा 'अद्ल-ए-सुलैमाँ दर दवीद
एक भोला आदमी दिन चढ़े आया
(और) हज़रत सुलैमान की ’अदालत में दौड़ा
रूयश अज़ ग़म ज़र्द-ओ-हर दो लब कबूद
पस सुलैमाँ गुफ़्त ऐ ख़्वाजः चे बूद
ग़म से उसका चेहरा ज़र्द और दोनों होंट नीले थे
(हज़रत) सुलैमान ने पूछा ऐ साहिब क्या हुआ
गुफ़्त 'इज़्राईल दर मन ईं चुनीं
यक-नज़र अन्दाख़्त पुर-अज़ ख़श्म-ओ-कीं
उसने कहा, इज़्राईल (’अलैहिस्सलाम) ने मुझ पर ऐसी
एक नज़र डाली जो ग़ुस्सा और कीना से भरी हुई थी
गुफ़्त हीं अक्नूँ चे मी ख़्वाही ब-ख़्वाह
गुफ़्त फ़र्मा बाद रा ऐ जाँ पनाह
उन्होंने कहा अब जो कुछ चाहता है, बयान कर
उसने कहा, ऐ जाँ-पनाह हवा को हुक्म दीजिए
ता मरा ज़ीं-जा ब-हिन्दुस्ताँ बरद
बू कि बंदा कि-आँ तरफ़ शुद जाँ बरद
ताकि मुझे उस जगह से हिन्दुस्तान ले जाए
हो सकता है बंदा उस तरफ़ चला जाए तो जान बचा ले
नक ज़ दरवेशे गुरेज़ाँनंद ख़ल्क़
लुक़्मः-ए-हिर्स-ओ-अमल ज़ाँनंद ख़ल्क़
अब इफ़्लास से लोग भागते हैं
इसलिए लोग हिर्स और ख़्वाहिश का लुक़्मा हैं
तर्स-ए-दरवेशी मिसाल-ए-आँ हिरास
हिर्स-ओ-कोशिश रा तु हिंदुस्ताँ शनास
इफ़्लास का डर, उस ख़ौफ़ की मिसाल है
हिर्स और कोशिश को तू हिन्दुस्तान समझ
बाद रा फ़र्मूद: ता ऊ रा शिताब
बुर्द सू-ए-क़ा'र-ए-हिंदुस्ताँ बर आब
हवा को हुक्म दिया और वो फ़ौरन उसको
पानी पर (सवार) कर के हिन्दुस्तान की सरज़मीन की तरफ़ ले गई
रोज़-ए-दीगर वक़्त-ए-दीवान-ओ-लक़ा
पस सुलैमाँ गुफ़्त 'इज़्राईल रा
दूसरे दिन दरबार और मुलाक़ात के वक़्त
हज़रत सुलैमान ने इज़्राईल (’अलैहिस्सलाम) से कहा
काँ मुसलमाँ रा ब-ख़श्म अज़ बहर आँ
बंगरीदी ता शुद आवारः ज़ ख़्वाँ
उस मुसलमान को ग़ुस्सा से किस वजह से
तू ने देखा? ऐ अल्लाह के क़ासिद बता
गुफ़्त मन अज़ ख़श्म के कर्दम नज़र
अज़ तअ'ज्जुब दीदमश दर रहगुज़र
उस ने कहा कि कब मैंने तुम्हें ग़ुस्से से देखा
मैं ने त’अज्जुब से उस को रास्ते में देखा
कि मरा फ़र्मूद हक़ कि इमरोज़ हाँ
जान-ए-ऊ रा तू ब-हिन्दुस्ताँ सिताँ
इसलिए कि मुझे अल्लाह तआ’ला ने हुक्म दिया है कि आज ही
उसकी जान हिन्दुस्तान में निकाल ले
अज़ 'अजब गुफ़्तम गर ऊ रा सद परस्त
ऊ ब-हिन्दुस्ताँ शुदन दूर अंदरस्त
त’अज्जुब से मैंने कहा कि अगर उसके सौ पर हों
उसका हिन्दुस्तान पहुँचना दूर (अज़ क़ियास) है
तू हम: कार-ए-जहाँ रा हम-चुनीं
कुन क़ियास-ओ-चश्म ब-गुशा-ओ-ब-बीं
(ऐ मुख़ातिब) तू दुनिया के तमाम कामों को उस पर
क़ियास कर ले, और आँख खोल और देख
अज़ कि ब-गुरेज़ेम अज़ ख़ुद ऐ मुहाल
अज़ कि बर बायेम अज़ हक़ ऐ वबाल
हम किससे भागें? अपने आपसे? ये ना-मुम्किन है
हम किससे सर-ताबी करें? ख़ुदा से! ये तो तबाही है
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