तफ़्सीर-ए-क़ौल-ए-फ़रीदुद्दीन 'अत्तार क़ुद्देसल्लाहु सिर्रहु
सौदा गर का जंगल में तूतियों को देखना और पैग़ाम पहुँचाना
तू साहिब-ए-नफ़्सी ऐ ग़ाफ़िल मयान-ए-ख़ाक ख़ूँ मी-ख़ुर
कि साहिब दिल अगर ज़हरे ख़ुरद आँ अंग्बीं बाशद
जब वो हिन्दोस्तान के हुदूद में पहुँचा
उस ने जंगल में चन्द तूतियाँ देखीं
साहिब-ए-दिल रा न-दारद आँ ज़ियाँ
गर ख़ुरद ऊ ज़हर-ए-क़ातिल रा 'अयाँ
सवारी रोकी और फिर आवाज़ दी
वो सलाम और वो अमानत पहुँचा दी
ज़ाँ-कि सेहत याफ़्त-ओ-अज़ परहेज़ रस्त
तालिब-ए-मिस्कीं मियान-ए-तब दर अस्त
तूतियों में से एक तूती काँपने लगी और फिर
गिर पड़ी और बहुत जल्द उस का दम टूट गया
गुफ़्त पैग़म्बर कि ऐ तालिब जरी
हाँ म-कुन बा हेच मतलूबे मरी
ख़बर पहूँचाने से ख़्वाजा परेशान हुआ
और बोला में एक जानदार की हलाकत के दर पे हुआ
दर तू नमरूदीस्त आतिश दर मरो
रफ़्त ख़्वाही अव्वल इब्राहीम शो
शायद ये तूती उस तूती की रिश्तेदार है
शायद ये दो जिस्म और एक जान थे
चुँ नेह सब्बाह-ओ-ने दरियाइ-ए
दर मी-अफ़्गन ख़्वेश अज़ ख़ुद राई-ए
मैंने ये क्यों किया? क्यों पैग़ाम पहुँचा या
इस फ़ुज़ूल बात से मैंने बेचारी को जला डाला
ऊ ज़ क़ा'र-ए-बहर गौहर आवरद
अज़ ज़ियाँ-हा सूद बर-सर आवरद
ये ज़बान पत्थर की तरह है और मुंह लोहा जैसा है
जो ज़बान से निकलता है आग की तरह है
कामिले गर ख़ाक गीरद ज़र शवद
नाक़िस अर ज़र बुर्द ख़ाकिस्तर शवद
ख़्वाह-मख़ाह पत्थर और लोहे को ना टकरा
कभी नक़ल के तौर पर और कभी शेख़ी से
चूँ क़ुबूल-ए-हक़ बुवद आँ मर्द-ए-रास्त
दस्त-ए-ऊ दर कार-हा दस्त-ए-ख़ुदास्त
क्योंकि अंधेरा है हर जानिब रुई है
शोला रुई में कैसे रुक सकता है?
दस्त-ए-नाक़िस दस्त-ए-शैतानस्त-ओ-देव
ज़ाँ-कि अंदर दाम-ए-तक्लीफ़स्त-ओ-रेव
वो लोग ज़ालिम हैं जिन्हों ने आँखें सी लीं
और बातों से जहाँ को जला डाला
जहल आयद पेश-ए-ऊ दानिश शवद
जहल शुद 'इल्मे कि दर नाक़िस रवद
एक बात, जहान को वीरान कर देती है
मुर्दा लोमड़ियों को शेर बना देती है
हर चे गीरद 'इल्लते 'इल्लत शवद
कुफ़्र गीरद कामिले मिल्लत शवद
रूहें अपनी असल में (हज़रत)-ए-ईसा का सा दम रखती हैं
एक वक़्त ज़ख़्म हैं और दूसरे वक़्त मरहम हैं
ऐ मिरे कर्दः प्यादः बा-सवार
सर नख़्वाही बुर्द अक्नूँ पा-ए-दार
अगर रूहों से पर्दा उठ जाये
तो हर रूह की बात मसीह जैसी है
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