ज़ याफ़्त-ए-तावील-ए-रकीक-ए-मगस
मक्खी की रकीक तावील का बोदा पन
आँ मगस बर बर्ग-ए-काह-ओ-बौल-ए-ख़र
हम-चू कश्ती-बाँ हमी अफ़्राश्त सर
वो मक्खी घास के तिनके और गधे के पेशाब पर
मल्लाह की तरह शेख़ी बघारती थी
गुफ़्त मन दरिया-ओ-कश्ती ख़्वाँदः-अम
मुद्दते दर फ़िक्र-ए-आँ मी माँदः-अम
बोली मैंने दरिया की कश्ती के बारे में पढ़ा है
एक मुद्दत तक मैं उसकी फ़िक्र में रही हूँ
ईं-कि ईं दरिया-ओ-ईं कश्ती-ओ-मन
मर्द-ए-कश्ती-बान-ओ-अहल-ओ-रा.ए-ज़न
तय दरिया और ये कश्ती है और मैं हूँ
कश्ती बान और साहब-ए-तदबीर-ओ-फ़न हूँ
बर सर-ए-दरिया हमी राँद ऊ 'अमद
मी नुमूदश आँ क़दर बैरूँ ज़ हद
दरिया पर दो चप्पू चला रही थी
और वो उस को ला-महदूद आता था
बूद बे-हद आँ चुनीं निस्बत बदो
आँ नज़र कि बीनद आँ रा रास्त कू
इस के एतबार से वो पेशाब ला-महदूद था
उस की वो निगाह कहाँ थी कि उसको सही तौर पर देखती
'आलमश चंदाँ बुवद किश बीनश अस्त
चश्म-ए-चन्दीं बहर-ए-हम चंदीनश अस्त
उस का आलिम भी इतना ही है जिस क़दर उसकी निगाह है
जातनी उस की आँख है, उतना ही उस दरिया है
साहब-ए-तावील-ए-बातिल चूँ मगस
वहम-ए-ऊ बौल-ए-ख़र-ओ-तस्वीर-ए-ख़स
बातिल तावील करनेवाला, मक्खी की तरह है
उस का ख़्याल, गधे का पेशाब और तिनके की सूरत है
गर मगस तावील ब-ग़ुज़ारद ब-राय
आँ मगस रा बख़्त गर्दानद हुमाए
अगर मक्खी राय की वजह से तावील करना छोड़ दे
तो नसीबा उस मक्खी को हुमा बना दे
आँ मगस न-बुवद किश ईं 'इबरत बुवद
रूह-ए-ऊ ने दर ख़ुर-ए-सूरत बुवद
वो मक्खी नहीं है जिसमें ये ग़ैरत हो (कि बातिल तावील ना करे)
उस की रिदह उस की सूरत के मुवाफ़िक़ नहीं होती है
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