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ये हिर्स-ओ-हवस की मंडी है अनमोल रतन बिक जाते हैं

नाज़ाँ शोलापुरी

ये हिर्स-ओ-हवस की मंडी है अनमोल रतन बिक जाते हैं

नाज़ाँ शोलापुरी

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    ये हिर्स-ओ-हवस की मंडी है अनमोल रतन बिक जाते हैं

    महलों के परख़च्चे उड़ते हैं धनवान के धन बिक जाते हैं

    दौलत की तरह तौबा तौबा अहबाब-ए-वतन बिक जाते हैं

    बाज़ार अ'जब बाज़ार है ये रंगीन चमन बिक जाते हैं

    रंगीन चमन का ज़िक्र ही क्या मुर्दों के कफ़न बिक जाते हैं

    ता'वीज़ में क़ुरआँ बिकता है मंतर भी ख़रीदा जाता है

    नीलाम वज़ीफ़े होते हैं गौहर भी ख़रीदा जाता है

    मिट्टी भी ख़रीदी जाती है पत्थर भी ख़रीदा जाता है

    मस्जिद का भी सौदा होता है मंदिर भी ख़रीदा जाता है

    मुल्लाओं के सज्दे बिकते हैं पंडित के भजन बिक जाते हैं

    क्या सोच रहे हो अहल-ए-जिगर हर चीज़ का सौदा होता है

    दो दिन का तमाशा है ये मगर हर चीज़ का सौदा होता है

    डालो तो ज़रा दुनिया पे नज़र हर चीज़ का सौदा होता है

    जो चाहो ख़रीदो आओ इधर हर चीज़ का सौदा होता है

    बिकती हैं सुहाग की रातें भी दुल्हन के चलन बिक जाते हैं

    तौबा ये ज़माना कैसा है हर बात पे 'नाज़ाँ' पैसा है

    महफ़ूज़ रहे ईमाँ अपना माहौल-ए-ज़माना बदला है

    ज़र ले के ख़ुद्दारी बेची क्या ख़ूब ये सौदा सस्ता है

    शोअ'रा ने ज़मीर अपना बेचा लफ़्ज़ों का ख़ज़ाना बेचा है

    चाँदी के चमकते सिक्कों पर अर्बाब-ए-सुख़न बिक जाते हैं

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    इस्मईल आज़ाद

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