गुरपद पया जी अनुभव आया जी
गुरपद पया जी अनुभव आया जी
सद्गुरू ने जद किरपा कीयी चिदघनतक बिराजे
तन्मय छत्र विचित्र सुहावे अनुहत डंका बाजे
द्वैतदलन करने मिलाया दैवीसंपत को जा
देखत ही सब शत्रु मिट गये इस बिध मैं हूँ राजा
सार बिचार बिबेकसो नेमधरमसो जाने
मुक्ति निरतितूर्या सह मिल रहू कीर बेद बखाने
भगत जगतमों मिल गये इस बिध नाम-निशान फडके
त्रिभुवन का सब खेल हमारा जम की छाती तडके
जगमगज्योत निरामय देखी क्या कहुँ अजब तमासा
देवनाथ प्रभु 'दयाल' निरंजन झुले मस्त हमेशा
सब बनिता बिरहन की मारी बिसरि बिकल पल छन मन की
मोरमुगुट पीतांबर शोभे चाल चलावो जैसी मटकन की
देवनाथ प्रभु 'दयाल' तुम हो आस लगी पद सुमरण की
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