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अपनी विरह-कथा - सावन मास मेघ घिर आये गरज-गरज धुन शब्द सुनाये

शालीग्राम

अपनी विरह-कथा - सावन मास मेघ घिर आये गरज-गरज धुन शब्द सुनाये

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    सावन मास मेघ घिर आये गरज-गरज धुन शब्द सुनाये

    रिम-झिम बरपा होवत भारी हिय बिच लागी बिरह कटारी

    प्रीतम छाय रहे परदेसा बूझत रही नहिं मिला संदेसा

    रैन दिवस रहूँ अति घबराती कसक कसक मेरी कसके छाती

    कासे कहूँ कोइ दर्द बूझै बिन पिय दरस नहीं कुछ सूझै

    चमके बीज तड़प उठे भारी कस पाऊँ पिया प्रान अधारी

    रोवत बीते दिन और राती दर्द उठत हिये में बहु भाँती

    ढूँढत ढूँढत बन बन डोली तब 'राधास्वामी' की सुन पाई बोली

    प्रीतम प्यारे का दिया संदेसा शब्द पकड़ जाओ उस देसा

    सुरत शब्द मारग दरसाया मन और सुरत अधर चढ़वाया

    कर सतसंग खुले हिये नैना प्रीतम प्यारे के सुने वहीं बैना

    जब पहिचान मेहर से पाई प्रीतम आप गुरु बन आई

    दया करी मोहि अंग लगाया दुख दर्द सब दूर हटाया

    क्या महिमा 'राधास्वामी' गाऊँ तन मन वारूँ बलबल जाऊँ

    भागे जगे गुरु चरन निहारे अब कहूँ धन धन 'राधास्वामी' प्यारे

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