अपनी बात - सतगुरु पूरे परम उदारा दया दृष्टि से मोहिं निहारा
सतगुरु पूरे परम उदारा दया दृष्टि से मोहिं निहारा
दूर देश से चल कर आया दर्शन कर मन अति हरखाया
सुन सुन बचन प्रीत हिय जागी चरन सरन में सूरत पागी
करम भरम संशय सब भागा 'राधास्वामी' चरन बढ़ा अनुरागा
सुरत शब्द मारग दरसाया बिरह अंग ले ताहि कमाया
कुल कुटुम्ब का मोह छुड़ाना सतसंगत में मन ठहराना
सुमिरन भजन रसीला लागा सोता मन धुन सुन कर जागा
मेहर हुई सुरत नभ पर दौड़ी त्रिकुटी जा गुर चरनन जोड़ी
अचरज लीला देखी सुन में मुरली धुन अब पड़ी श्रवन में
पहुँची फिर सतगुरु दरबारा अलख अगम को जाय निहारा
वहं से भी फिर अधर सिधारी मिल गए 'राधास्वामी' पुरुष अपारी
वहं जाय कर आरत गाईपूरन दया सामने पाई
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