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ऐ ख़ुश आँ रोज़े कि मन अंदर मदीनः जा कुनम

अमीर हसन अला सिज्ज़ी

ऐ ख़ुश आँ रोज़े कि मन अंदर मदीनः जा कुनम

अमीर हसन अला सिज्ज़ी

MORE BYअमीर हसन अला सिज्ज़ी

    ख़ुश आँ रोज़े कि मन अंदर मदीनः जा कुनम

    दर हरीम-ए-रौज़:-ए-शाह-ए-रुसुल मावा कुनम

    वह दिन मंगलमय होगा जब मैं मदीना जा सकूँ, और रसूलों के सरदार के रौज़े की पनाह पा सकूँ।

    सायम अंदर बारगाहश रु-ए-गर्द-आलूद:-ए-ख़ुद

    वज़ ग़ुबार-ए-आस्तानश चश्म-ए-दिल बीना कुनम

    उनके दरबार में अपना धूल-भरा चेहरा रख दूँ, और उनके आस्ताने की मिट्टी से अपनी दिल की आँख को रौशन कर सकूँ।

    पा-ए-कूबाँ सीनः-ए-सोज़ाँ दीद:-गिर्यां दम-ब-दम

    दर तजल्ला-ए-जमालश जान-ओ-दिल शैदा कुनम

    नृत्य करते हुए, जलते हुए सीने और रोती हुई आँखों के साथ, हर क्षण उनके सौंदर्य के प्रताप में अपनी जान और दिल को निसार कर सकूँ।

    गर ज़े-सहरा-ए-मदीन: बू-ए-आँ सय्यद वज़द

    गर्द-ए-आँ-सहरा दरून-ए-दीद:-ओ-दिल जा कुनम

    अगर मदीना के रेगिस्तान से उस सरदार-ए-कायनात की ख़ुशबू आए, तो अपनी आँख और दिल को उसी रेगिस्तान की धूल पर क़ुर्बान कर सकूँ।

    हाजत-ए-मिस्कीँ हसन ईं अस्त यारब मुस्तजाब

    ता कि जान-ओ-दिल फ़िदा-ए-ख़ाक-ए-आँ मावा कुनम

    बेचारा हसन की यही मनोकामना है, प्रभु! इसे स्वीकार कर ले, ताकि अपनी जान और दिल को उस आस्ताने की ख़ाक पर फ़िदा कर सकूँ।

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