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बख़ूबी हम-चु मह ताबिंद: बाशी

अमीर ख़ुसरौ

बख़ूबी हम-चु मह ताबिंद: बाशी

अमीर ख़ुसरौ

MORE BYअमीर ख़ुसरौ

    रोचक तथ्य

    کچھ اشعار کا اردو منظوم ترجمہ عزیز وارثی دہلوی نے کیا ہے

    बख़ूबी हम-चु मह ताबिंद: बाशी

    ब-मुल्क-ए-दिल-बरी पाइंदः बाशी

    तेरा ख़ूबसूरत चेहरा चाँद की तरह चमकता रहे

    मुल्क-ए-हुस्न पे तेरी बादशाही सलामत रहे

    मन-ए-दरवेश रा कुश्ती ब-ग़मज़:

    करम कर्दी इलाही ज़िंद: बाशी

    तेरी क़ातिलाना निगाह ने मुझ ग़रीब को मार डाला

    करम किया तू ने ख़ुदा तुझे ज़िंदगी दे

    जफ़ा कम कुन कि फ़र्दा रोज़-ए-महशर

    ब-रु-ए-आ’शिकाँ शर्मिंद: बाशी

    जफ़ा कम करो के कल क़यामत के दिन कहीं तुम्हें

    आशिक़ों के सामने शर्मिंदा होना पड़े

    ज़ क़ैद-ए-दो-जहाँ आज़ाद बाशम

    अगर तू हम-नशीन-ए-बंद: बाशी

    मैं दोनों जहानों की क़ैद से आज़ाद हो जाऊँ

    अगर कभी तू मेरा हम-सफ़र हो जाए

    जहाँ-सोज़ी अगर दर ग़म्ज़: आई

    शकर-रेज़ी अगर दर खंद: बाशी

    तुम्हारी निगाह-ए-नाज़ से निज़ाम-ए-दुनिया बदल जाता है

    और तुम्हारी मुस्कुराहट से मिठास बिखर जाती है

    ब-रिंदी-ओ-ब-शोख़ी हम-चू 'ख़ुसरौ'

    हज़ाराँ ख़ान माँ बर-कंद: बाशी

    तुम्हारी शोख़ी और ज़िंदा-दिली के चलते

    ख़ुसरौ जैसे हज़ारों दिल तबाह हो गए

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    नुसरत फ़तेह अली ख़ान

    नुसरत फ़तेह अली ख़ान

    स्रोत :
    • पुस्तक : नग़्मात-ए-सिमा (पृष्ठ 371)
    • प्रकाशन : नूरुलहसन मौदूदी साबरी (1935)

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