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Sufinama

चूँ रुख़त रा हर ज़माँ हुस्न-ओ-जमाले दीगरस्त

शम्स मग़रिबी

चूँ रुख़त रा हर ज़माँ हुस्न-ओ-जमाले दीगरस्त

शम्स मग़रिबी

MORE BYशम्स मग़रिबी

    चूँ रुख़त रा हर ज़माँ हुस्न-ओ-जमाले दीगरस्त

    लाजरम हर-दम मरा बा तू विसाले दीगरस्त

    तेरे चेहरे का जमाल हर वक़्त अलग अंदाज़ का होता है

    इसलिए मुझे हर वक़्त एक नया विसाल महसूस होता है

    ईं कि हर साअ'त जमाले मी-नुमायद रु-ए-तू

    पेश-ए-अर्बाब-ए-कमालात ईं कमाल-ए-दीगरस्त

    दिलबरी के लिए दिलबर की किताब पर

    तेरे नैन नक़्श की सियाही दूसरी तरह जल्वा-गर होती है

    बर बयाज़-ए-रू-ए-दिलबर अज़ बयाज़-ए-दिलबरे

    अज़ सवाद-ओ-ख़त्त-ओ-ख़ालत ख़त्त-ओ-ख़ाले दीगरस्त

    पूरी दुनिया उस के चेहरे की मिसाल है

    लेकिन दिल के अंदर हर वक़्त एक नई मिसाल जल्वा-गर होती है

    बावजूद-ए-आँ कि हुस्न-ए-ऊ बरूनसत अज़ जहाँ

    दर दिमाग़-ए-हर-कसे अज़ वै ख़याले दीगरस्त

    ‘मग़्‍रिबी’ उस की भवें और चेहरा चारों तरफ़

    पूरे चाँद और नए चाँद की तरह नज़र आते हैं

    गरचे आ'लम सर-बसर नक़्श-ओ-मिसाल-ए-रू-ए-ऊस्त

    लेक रा हर ज़माँ दर दिल मिसाले दीगरस्त

    सू-ए-ऊ हर्गिज़ ब-पर्र-ओ-बाल-ए-ख़ुद न-तवाँ परीद

    हम ब-बाल-ए-ऊ तवाँ काँ पर्र-ओ-बाले दीगरस्त

    गोश-ओ-दिल न-शनूदःई न-तवाँ शुनीदन ईं मक़ाल

    ज़ाँ कि हर सम्ए’ सर-ए-ऊ अज़ मक़ाले दीगरस्त

    'मग़रिबी' रा दर नज़र पैवस्तः ज़ाँ अब्रू-ओ-रू

    हर तरफ़ बद्रस्त-ओ-हर जानिब हिलाले दीगरस्त

    स्रोत :
    • पुस्तक : किताब-ए-मुस्तताब-ए-शम्स-मग़रिबी (पृष्ठ 18)
    • रचनाकार : शम्स मग़रिबी
    • प्रकाशन : शिर्कत सिहामी चाप

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