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ब-फ़िगन बर सफ़-ए-रिंदाँ नज़रे बेहतर अज़ीं

हाफ़िज़

ब-फ़िगन बर सफ़-ए-रिंदाँ नज़रे बेहतर अज़ीं

हाफ़िज़

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    ब-फ़िगन बर सफ़-ए-रिंदाँ नज़रे बेहतर अज़ीं

    बर दर-ए-मै-कदा मी-कुन गुज़रे बेहतर अज़ीं

    महबूब रिंदों की सफ़ पर उस से बेहतर नज़र डाल (या’नी सफ़-ए-उ’श्शाक़ पर मय-कदे में उसे बेहतर अंदाज़ में दाख़िल हो

    दर हक़-ए-मन लबत आँ लुत्फ़ कि मी-फ़र्मायद

    गरचे ख़ूबस्त-ओ-लेकिन क़द्रे बेहतर अज़ीं

    मेरे हक़ में उस मा’शूक़ के लब ने जो मेहरबानी की है वो अगरचे ख़ूब है लेकिन उस से कुछ बेहतर लुत्फ़ कर

    आँ कि फ़िक्रश गिरह अज़ कार-ए-जहाँ ब-कुशायद

    गो दरीं नुक्तः बफ़रमा नज़रे बेहतर अज़ीं

    वो जिसकी फ़िक्र दुनिया के लिए कार-कुशा है, उस से कहो कि उस नुक्ता-ए-इ’श्क़ पर ज़रा उस से बेहतर तरीक़े पर ग़ौर-ओ-फ़िक्र करे

    दिल बदाँ रूद-ए-गिरामी चे कुनम गर न-देहम

    मादर-ए-दहर न-दारद पिसरे बेहतर अज़ीं

    मैं उस फ़र्ज़ंद-ए-गिरामी (मराद रसूलुल्लाह की ज़ात-ए-गिरामी है क्यूँ कि यही मफ़हूम हक़ीक़त से क़रीब है) को दिल दूँ तो क्या करूँ, मादर-ए-दहर (ज़माने की माँ या’नी किसी ज़माने ने) उस से बेहतर बेटा पैदा नहीं किया (या’नी रसूलुल्लाह से बेहतर कोई किसी ज़माने में पैदा नहीं हुआ, इसलिए आपसे बढ़कर महबूब कौन होगा जिसको दिल नज़्र किया जाए)

    स्रोत :
    • पुस्तक : नग़मातुल उंस फ़ी मजालिसिल क़ुदस (पृष्ठ 259)
    • रचनाकार :शाह हिलाल अहमद क़ादरी
    • प्रकाशन : दारुल एशा'अत ख़ानक़ाह मुजीबिया (2016)
    • संस्करण : First

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