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सलामुल्लाह मा-कर्रल-लयाली

हाफ़िज़

सलामुल्लाह मा-कर्रल-लयाली

हाफ़िज़

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    सलामुल्लाहि मा-कर्रल-लयाली

    अ’ला मलिकिल-मकारिम-वल-मआ’ली

    अल्लाह का सलाम आता रहे उस बुजु़र्गी और बुलंदी रखने वाले बादशाह पर जब तक रातें आती रहें (या’नी पै-दर-पै क़ियामत तक, यहाँ मलकुल-मकारिम-वल-मआ’ली से, अल्लाह के हबीब ही मुराद हो सकते हैं)

    अ'ला वादिल-इराकि-ओ-मन अ’लैहा

    व-दारी बिल-लिवा फ़ौक़र्रिमाली

    वादी-ए-अराक पर (जहाँ पीलू के दरख़्त हैं) और जो लोग वहाँ पर हैं और मेरे घर पर जो रेत के ऊपर लवा में है (वादी-ए-अराक से अग़्लब है कि मदीना मुनव्वरा के क़रीब का मक़ाम मुराद लिया जाए और लवा से वो मक़ाम मुराद लिया जाए जहाँ से रास्ता मदीना को मुड़ता है, तो अल्लाह के इस सलाम में साहिब-ए-मदीना और उनके तुफ़ैल में, वो पूरी वादी-ए-मुक़द्दस मुराद होगी)

    मनाल दिल कि दर ज़ंजीर-ए-ज़ुल्फ़श

    हमः जमइ'य्यतस्त आशुफ्त: हाली

    मत घबरा दिल कि इस (महबूब) की ज़ंजीर में परेशान हाली के बावजूद जमी’अत-ए-क़लबी है (या’नी जिस महबूब की ज़ुल्फ़ के ज़ंजीर में तू क़ैद है मेरी जमीअ’त-ए-ख़ातिर की दौलत वहाँ रखी है)

    फ़-हुब्बुक राहती फ़ी कुल्ले हीनिन

    ज़िक्रुक मूनिसी फ़ी कुल्ले हाली

    तेरी मोहब्बत मेरे लिए हर हाल में राहत का सबब है, और तेरा ज़िक्र हर हाल में मेरा अनीस (हमदम) है (यहाँ ज़ात-ए-बारी ता’ला मुराद लीजिए या हबीब-ए-हक़त-ए-ता’ला मुराद लीजिए, दोनों मफ़्हूम की गुंजाइश है)

    कुजा याबम विसाल-ए-चूँ तु शाहे

    मन-ए-बदनाम रिंद-ए-ला-उबाली

    मैं तुझ जैसे बादशाह का विसाल कहाँ से हासिल कर सकता हूँ, मै तो एक बद-नाम-ओ-बे-परवा शराबी हूँ

    ख़ुदा दानद कि 'हाफ़िज़' रा ख़बर चीस्त

    व-इ’ल्मुल्लाहि हस्बी ज़ुल-जलाली

    ख़ुदा जानता है कि ‘हाफ़िज़’ का मक़सद क्या है? अल्लाह और ज़ूल-जलाल का जानना मेरे लिए काफ़ी है (या’नी अपने मक़सद को ज़ाहिर करना ज़रूरी नहीं, क्यूँ कि मेरे मक़सद और नीयत से अल्लाह वाक़िफ़ है)

    स्रोत :
    • पुस्तक : नग़मातुल उंस फ़ी मजालिसिल क़ुदस (पृष्ठ 293)
    • रचनाकार :शाह हिलाल अहमद क़ादरी
    • प्रकाशन : दारुल एशा'अत ख़ानक़ाह मुजीबिया (2016)
    • संस्करण : First

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